बीस साल में चांदी का चमत्कार और निवेश की बदलती कहानी
- करीब दो दशक पहले मामूली कीमत पर बिकने वाली चांदी आज रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है।
Khabari Chiraiya Desk: चांदी की कीमतों ने समय के साथ जिस तरह का सफर तय किया है, उसने निवेशकों को चौंकाया भी है और सोचने पर भी मजबूर किया है। नवंबर 2005 में जब एक किलो चांदी की कीमत लगभग बारह हजार रुपये के आसपास थी, तब इसे केवल एक औद्योगिक धातु और सीमित निवेश विकल्प के रूप में देखा जाता था। उस दौर में शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि यही चांदी दो दशक बाद दो लाख रुपये प्रति किलो के स्तर को पार कर जाएगी।
चांदी के दामों का शुरुआती उछाल अपेक्षाकृत तेज रहा। कुछ ही महीनों में इसकी कीमतों में हजारों रुपये की बढ़ोतरी देखने को मिली। शुरुआती दौर में वैश्विक बाजारों में मांग, डॉलर की चाल और औद्योगिक उपयोग ने इसकी कीमतों को ऊपर की ओर धकेला। देखते ही देखते चांदी ने बीस हजार रुपये का आंकड़ा छू लिया और निवेशकों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
इसके बाद का दौर उतना तेज नहीं रहा। तीस हजार रुपये तक पहुंचने में चांदी को कई सालों का समय लगा। यह वह चरण था जब कीमतें धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थीं और बाजार में स्थिरता का माहौल था। निवेशकों के लिए यह धैर्य की परीक्षा जैसा समय था। हालांकि, जो लोग लंबे समय तक टिके रहे, उनके लिए यह इंतजार फायदेमंद साबित हुआ।
साल 2010 के आसपास चांदी की कीमतों में अचानक तेजी देखने को मिली। कुछ ही महीनों में यह चालीस हजार और फिर पचास हजार रुपये प्रति किलो के स्तर को पार कर गई। यह दौर वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, कच्चे माल की बढ़ती मांग और सुरक्षित निवेश विकल्पों की तलाश से जुड़ा रहा। चांदी को सोने के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा, जिससे इसकी मांग में जबरदस्त उछाल आया।
2011 के आसपास चांदी ने एक और बड़ा मुकाम हासिल किया और सत्तर हजार रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई। लेकिन इसके बाद कहानी ने करवट ली। अगले कई वर्षों तक चांदी की कीमतें एक सीमित दायरे में घूमती रहीं। कभी तेजी, कभी गिरावट, लेकिन कोई बड़ा ब्रेकथ्रू नहीं। यह लंबा ठहराव निवेशकों के लिए निराशाजनक भी रहा और सीख देने वाला भी।
करीब एक दशक से अधिक समय तक चांदी सत्तर हजार से ऊपर स्थायी रूप से नहीं जा सकी। वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां, ब्याज दरें और मांग में उतार-चढ़ाव इसके पीछे प्रमुख कारण रहे। इस दौरान कई निवेशक बाजार से बाहर भी हुए तो कुछ ने इसे दीर्घकालिक निवेश मानकर बनाए रखा।
आखिरकार 2024 में चांदी ने फिर से अपनी चमक दिखाई और अस्सी हजार रुपये प्रति किलो के स्तर को पार किया। इसके बाद तेजी इतनी तेज रही कि कुछ ही हफ्तों में यह नब्बे हजार और फिर एक लाख रुपये के आंकड़े की ओर बढ़ गई। यह उछाल वैश्विक अनिश्चितता, मुद्रास्फीति के दबाव और सुरक्षित निवेश की बढ़ती मांग से जुड़ा माना जा रहा है।
आज जब चांदी दो लाख रुपये प्रति किलो के पार पहुंच चुकी है तो यह केवल एक धातु की कीमत में बढ़ोतरी की कहानी नहीं रह जाती। यह कहानी धैर्य, समय और बाजार की समझ की भी है। चांदी का यह बीस साल का सफर बताता है कि निवेश में त्वरित लाभ से ज्यादा महत्व लंबे दृष्टिकोण का होता है। उतार-चढ़ाव के बीच टिके रहना ही अंततः सबसे बड़ा लाभ दे सकता है।
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