मिशन 2027 उत्तर प्रदेश: पश्चिम बंगाल पर नजर के साथ यूपी में भी रणनीतिक तैयारी तेज
- चुनावी गिरावट के बाद मंत्रिमंडल विस्तार से साधने की कोशिश।
Khabari Chiraiya Desk: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को यह साफ संकेत दे दिया है कि उत्तर प्रदेश अब ‘सेफ जोन’ नहीं रहा। कभी जिस राज्य ने भाजपा को ऐतिहासिक बहुमत दिलाया, वही प्रदेश अब पार्टी के लिए आत्ममंथन की जमीन बन चुका है। भले ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की नजर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर टिकी हो, लेकिन अंदरखाने पार्टी ने मिशन 2027 की तैयारी उत्तर प्रदेश से ही शुरू कर दी है। इसकी झलक संगठनात्मक फैसलों और संभावित मंत्रिमंडल विस्तार में साफ दिखाई दे रही है।
यूपी की राजनीति में हालिया बदलाव का सबसे अहम संकेत संगठन के शीर्ष चेहरे से मिला है। पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपकर भाजपा ने सामाजिक संतुलन साधने का प्रयास किया है। कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को आगे कर पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह केवल एक क्षेत्र या एक वर्ग की पार्टी नहीं है। लेकिन यह प्रयोग आसान नहीं है, क्योंकि संगठन और सरकार दोनों स्तर पर क्षेत्रीय असंतुलन अब खुलकर सामने आने लगा है।
वर्तमान समय में भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीच संतुलन साधने की है। सरकार के स्तर पर पहले ही यह धारणा बन चुकी है कि पूर्वी यूपी का दबदबा ज्यादा है। अब संगठन में भी वही तस्वीर उभरती नजर आ रही है। इसका असर पश्चिमी यूपी, ब्रज, बुंदेलखंड और रुहेलखंड जैसे क्षेत्रों में पार्टी के प्रदर्शन पर दिख चुका है। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा का सीटों के लिहाज से सिमटना सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी है।
2009 में जहां भाजपा उत्तर प्रदेश में सिर्फ 10 सीटों पर सिमटी थी, वहीं 2014 में उसने सहयोगियों के साथ मिलकर लगभग पूरे प्रदेश पर कब्जा जमा लिया था। 2019 में भी पार्टी मजबूत स्थिति में रही, लेकिन 2024 में अचानक गिरावट ने नेतृत्व को चौंका दिया। सीटों की संख्या का गिरना इस बात का संकेत है कि मतदाता अब केवल पुराने नारों से संतुष्ट नहीं है।
पश्चिमी यूपी में पार्टी को सबसे बड़ा झटका लगा। जिन इलाकों को भाजपा का कोर क्षेत्र माना जाता था, वहीं पार्टी कई सीटें गंवा बैठी। रुहेलखंड, ब्रज और बुंदेलखंड में भी भाजपा का ग्राफ नीचे गया। इन क्षेत्रों में किसान आंदोलन, स्थानीय नेतृत्व की कमी और सामाजिक समीकरणों का बदलना ऐसे कारण रहे, जिनका असर सीधे चुनावी नतीजों पर पड़ा।
ऐसे में अब सबकी नजर योगी सरकार के संभावित मंत्रिमंडल विस्तार पर है। माना जा रहा है कि भाजपा इस विस्तार के जरिए न केवल क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने की कोशिश करेगी, बल्कि उन सामाजिक वर्गों को भी संदेश देगी, जो हालिया चुनाव में पार्टी से दूर होते दिखे। मंत्रिमंडल में पश्चिमी यूपी और अन्य उपेक्षित क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देना पार्टी के लिए रणनीतिक मजबूरी बन चुका है।
कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में भाजपा अब आत्मविश्वास के दौर से रणनीतिक सतर्कता के दौर में प्रवेश कर चुकी है। मिशन 2027 केवल एक चुनावी लक्ष्य नहीं, बल्कि संगठन, सरकार और सामाजिक संतुलन की परीक्षा है। अगर भाजपा समय रहते इन संकेतों को समझने में सफल होती है तो उसकी राजनीतिक बढ़त बरकरार रह सकती है, वरना यूपी की राजनीति में आने वाले साल और भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।
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