मोतिहारी: जब पुलिस बनी मां की उम्मीद
- विदेशी धरती पर इलाज की आस लेकर आई महिला टूट चुकी थी। भूख और बीमारी के बीच थानाध्यक्ष ने थामा उसका हाथ। मदद ने बेबसी को थोड़ी राहत और आंखों को सुकून दिया
Khabari Chiraiya Desk : मोतिहारी की एक आम सी शाम उस वक्त खास बन गई, जब वर्दी में खड़े एक अधिकारी ने कानून से परे जाकर इंसानियत का सबसे खूबसूरत चेहरा दिखाया। नगर थानाध्यक्ष राजीव रंजन ने ऐसा काम किया, जिसने यह एहसास करा दिया कि पुलिस सिर्फ अपराध से लड़ने वाली संस्था नहीं, बल्कि दर्द में डूबे लोगों के लिए उम्मीद की आखिरी किरण भी हो सकती है।
शरण नर्सिंग होम के बाहर सड़क किनारे बैठी एक नेपाली महिला अपनी गोद में मासूम बच्ची को लिए बिलख रही थी। बच्ची गंभीर बीमारी से जूझ रही थी और मां की आंखों में इलाज की नहीं, बल्कि बेबसी की नमी थी। उसी रास्ते से गश्त करते हुए गुजर रहे नगर थानाध्यक्ष राजीव रंजन की नजर उस दृश्य पर पड़ी। भीड़ भरी सड़क पर एक पल के लिए उन्होंने गाड़ी रुकवाई और उस मां के पास पहुंच गए।
बातचीत के दौरान महिला ने टूटी आवाज में बताया कि उसकी बच्ची ब्लड कैंसर से पीड़ित है। नेपाल से वह बड़ी उम्मीद लेकर मोतिहारी आई थी, लेकिन इलाज का खर्च, खाने का इंतजाम और आगे की राह सब कुछ उसकी पहुंच से बाहर हो चुका था। न पैसे थे, न कोई अपना और न ही लौटने का साधन। बस गोद में तड़पती बच्ची और आंखों में लाचार आंसू थे।
महिला की पीड़ा सुनकर थानाध्यक्ष राजीव रंजन खुद को रोक नहीं सके। उन्होंने बिना किसी औपचारिकता के महिला और बच्ची को अपनी गाड़ी में बैठाया। सबसे पहले उन्होंने दोनों के लिए भोजन की व्यवस्था कराई, ताकि भूख से टूट चुके शरीर को थोड़ी ताकत मिल सके। इसके बाद उन्होंने अपनी ओर से आर्थिक मदद दी, जिससे महिला को तत्काल राहत मिल सके।
यहीं कहानी खत्म नहीं हुई। थानाध्यक्ष ने यह भी सुनिश्चित किया कि महिला और उसकी बच्ची सुरक्षित अपने घर लौट सकें। उन्होंने रेलवे स्टेशन तक पहुंचाकर खुद ट्रेन का टिकट कटवाया और यात्रा की पूरी व्यवस्था कर दी। जब महिला स्टेशन से विदा हुई तो उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन इस बार वे दर्द के नहीं, बल्कि भरोसे और कृतज्ञता के थे।
राजीव रंजन का यह कदम किसी आदेश का पालन नहीं था, न ही किसी जिम्मेदारी का हिस्सा। यह सिर्फ इंसानियत का फर्ज था, जिसे उन्होंने पूरे मन से निभाया। जैसे ही यह घटना लोगों तक पहुंची, शहर में उनकी सराहना होने लगी। आम लोगों ने कहा कि ऐसे अधिकारी ही समाज में पुलिस के प्रति भरोसा पैदा करते हैं।
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