कानपुर: कागजों पर कारोबार और करोड़ों की टैक्स चोरी
- कानपुर में उजागर हुआ आईटीसी घोटाला। सवाल अब सिर्फ आरोपियों का नहीं, बल्कि सिस्टम की जवाबदेही का है
Khabari Chiraiya Desk: उत्तर प्रदेश के कानपुर से सामने आया आईटीसी टैक्स चोरी का मामला एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि कागजों पर खड़े किए गए कारोबार कैसे वर्षों तक सरकारी सिस्टम को चकमा देते रहते हैं। आवासीय पतों पर चलने वाली फर्जी फर्मों ने करोड़ों का व्यापार दिखाया, इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ लिया और सरकारी खजाने को लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों का नुकसान पहुंचाया। यह प्रकरण किसी एक गलती का नहीं, बल्कि सुनियोजित आर्थिक अपराध की तस्वीर पेश करता है।
सबसे गंभीर पहलू यह है कि जिन फर्मों ने भारी-भरकम कारोबार दिखाया, उनके पास न तो वास्तविक व्यापारिक ढांचा था और न ही जमीनी स्तर पर कोई गतिविधि। न गोदाम, न कर्मचारी, न माल की आवाजाही। इसके बावजूद सिस्टम ने उन्हें वर्षों तक वैध कारोबारी मानकर स्वीकार किया। इससे यह साफ होता है कि जीएसटी पंजीकरण और निगरानी की प्रक्रिया कहीं न कहीं केवल कागजी औपचारिकता बनकर रह गई है।
आईटीसी यानी इनपुट टैक्स क्रेडिट, जिसे ईमानदार कारोबारियों के लिए राहत और सुविधा के रूप में लाया गया था, आज टैक्स चोरी का सबसे बड़ा हथियार बनता जा रहा है। फर्जी बिल, बोगस दस्तावेज और काल्पनिक लेन-देन के सहारे टैक्स देनदारी को शून्य कर देना एक संगठित रणनीति का हिस्सा है। कानपुर का यह मामला बताता है कि आईटीसी के नाम पर सिस्टम से कैसे खेला जा सकता है, अगर समय रहते सख्त निगरानी न हो।
जांच में पति-पत्नी और करीबी लोगों के एक समूह के शामिल होने की आशंका इस मामले को और गंभीर बना देती है। यह संकेत देता है कि टैक्स चोरी अब व्यक्तिगत लालच से आगे बढ़कर संगठित गिरोह का रूप ले चुकी है। महिलाओं के नाम पर फर्मों का पंजीकरण होना और यह आशंका कि कहीं उनके दस्तावेजों का दुरुपयोग तो नहीं किया गया, इस अपराध के सामाजिक पहलू को भी उजागर करता है।
यह सवाल भी उठता है कि जब एसआईबी की शुरुआती जांच में इन फर्मों के अस्तित्व पर संदेह सामने आ चुका था, तो कार्रवाई को निर्णायक मोड़ तक पहुंचने में इतना समय क्यों लगा। क्या विभागीय समन्वय की कमी रही, या फिर प्रक्रिया की जटिलता ने अपराधियों को समय और अवसर दिया। ऐसे मामलों में देरी खुद अपराध को बढ़ावा देने जैसा प्रतीत होती है।
कानपुर का यह आईटीसी घोटाला चेतावनी है कि अगर जीएसटी प्रणाली में फिजिकल वेरिफिकेशन, डेटा एनालिटिक्स और जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया को और मजबूत नहीं किया गया तो कागजों पर खड़े किए गए ऐसे कारोबार आगे भी सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाते रहेंगे। सवाल केवल 6.46 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का नहीं है, सवाल उस भरोसे का है, जिस पर कर व्यवस्था और ईमानदार करदाता टिके हुए हैं।
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