ठंड और पाले के बीच फसलों का भविष्य दांव पर
- कोहरा और कड़ाके की सर्दी फसलों पर असर दिखाने लगी है। सब्जी और फूल वाली फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हैं
Khabari Chiraiya Desk: सर्दियों का मौसम आमतौर पर खेतों के लिए राहत लेकर आता है, लेकिन जब यही ठंड कोहरे और पाले का रूप ले ले, तो किसान के लिए यह मौसम चिंता का कारण बन जाता है। कानपुर देहात समेत पूरे मैदानी इलाकों में इन दिनों कुछ ऐसा ही दृश्य दिखाई दे रहा है। सुबह की धुंध, गिरता तापमान और बढ़ती नमी ने खेतों में खड़ी फसलों के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह केवल मौसम की समस्या नहीं है, बल्कि खेती की मौजूदा संवेदनशीलता को भी उजागर करता है।
सबसे अधिक असर उन फसलों पर पड़ रहा है, जो इस समय अपने नाजुक चरण में हैं। फूल वाली फसलें हों या सब्जियां, ठंड और कोहरे का संयोजन उनके लिए बड़ा खतरा बन चुका है। आलू जैसी प्रमुख नकदी फसल में झुलसा रोग के संकेत मिलना किसानों के लिए चेतावनी है। मटर, टमाटर, बैगन, गोभी और धनिया जैसी सब्जियां भी मौसम के असंतुलन से जूझ रही हैं। इन फसलों का उत्पादन सीधे तौर पर छोटे और सीमांत किसानों की आय से जुड़ा है, इसलिए नुकसान की आशंका उन्हें मानसिक दबाव में डाल रही है।
दूसरी ओर, पत्ती वाली फसलों में छेदक कीटों का बढ़ता प्रकोप यह दिखाता है कि बदलते मौसम के साथ कीट रोगों का स्वरूप भी तेजी से बदल रहा है। नमी और ठंड की स्थिति कई बार कीटों के लिए अनुकूल माहौल बना देती है, जिससे उनकी संख्या अचानक बढ़ जाती है। किसान दोहरी मार झेल रहे हैं-एक तरफ मौसम की मार, दूसरी तरफ कीट और रोग।
आने वाले दिनों में पाले की संभावना ने इस चिंता को और गहरा कर दिया है। पाला केवल फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि पूरे मौसम की मेहनत को कुछ ही घंटों में बेकार कर सकता है। ऐसे में किसान अपनी सीमित जानकारी और संसाधनों के सहारे फसलों की रक्षा में जुटे हैं। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई हल्की सिंचाई, रोग नियंत्रण के उपाय और रासायनिक छिड़काव निश्चित रूप से सहायक हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पर्याप्त है।
यह स्थिति एक बड़े सवाल की ओर इशारा करती है-क्या हमारी कृषि व्यवस्था मौसम के इस तरह के अचानक बदलावों के लिए तैयार है। हर साल ठंड, कोहरा और पाले का चक्र आता है, लेकिन तैयारी अक्सर व्यक्तिगत स्तर पर ही सीमित रह जाती है। किसानों को समय पर सटीक मौसम पूर्वानुमान, तकनीकी सलाह और सुलभ संसाधन उपलब्ध कराना सरकार और कृषि तंत्र की जिम्मेदारी है।
आज जरूरत इस बात की है कि खेती को केवल प्राकृतिक भरोसे पर न छोड़ा जाए। मौसम आधारित जोखिम प्रबंधन, फसल बीमा की प्रभावी पहुंच और गांव स्तर पर कृषि परामर्श की मजबूत व्यवस्था से ही किसानों की चिंता को कम किया जा सकता है। कोहरा और ठंड प्रकृति का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी मार से फसलों और किसानों को बचाना नीतिगत समझ और ठोस तैयारी से ही संभव है।
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