April 19, 2025

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राजनीति : कभी इधर, कभी उधर : क्या इस बार मुख्यमंत्री अपने वादों पर अडिग रहेंगे? लालू ने दिया नीतीश को ऑफर

लालू @ नीतीश

लालू @ नीतीश

नीतीश कुमार की राजनीति @ वादे, विचार और वास्तविकता

बिहार से हंसिका की रिपोर्ट…

विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिरता और उनके हालिया बयानों पर चर्चा तेज है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव द्वारा दिए गए महागठबंधन में शामिल होने के प्रस्ताव के बाद सीएम नीतीश कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब वह कहीं नहीं जाएंगे। लेकिन सवाल उठता है कि क्या बिहार की जनता इस वादे पर विश्वास करेगी, या यह भी उनके राजनीतिक इतिहास का एक और अध्याय बन जाएगा?

लालू का प्रस्ताव और नीतीश का जवाब

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में एक साक्षात्कार में नीतीश कुमार को महागठबंधन में वापस आने का निमंत्रण दिया। लालू ने साफ कहा कि नीतीश के साथ आने से उन्हें कोई समस्या नहीं है, और वे मिलकर काम करेंगे। लालू के इस बयान से पहले तेजस्वी यादव ने कहा था कि नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन के दरवाजे बंद हो चुके हैं। हालांकि, लालू की बातों ने इस अटकल को बल दिया कि बिहार की राजनीति में कोई नया समीकरण बन सकता है।

नीतीश कुमार ने गोपालगंज में अपने बयान के माध्यम से लालू प्रसाद यादव की बातों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि वह बिहार के विकास में पूरी तरह समर्पित हैं और एनडीए के साथ बने रहेंगे। नीतीश ने यह भी स्वीकार किया कि वह पहले गलतियां कर चुके हैं, लेकिन अब वह बिहार और देश के विकास के लिए अपने निर्णयों पर अडिग रहेंगे।

बिहार की राजनीति में नीतीश का स्थान

नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में स्थिरता और विकास की बात करते रहे हैं, लेकिन उनका अतीत एक अलग कहानी कहता है। वे पहले भी एनडीए और महागठबंधन के बीच बार-बार पाला बदलते रहे हैं। उनकी इस ‘राजनीतिक यात्रा’ ने न केवल उनके समर्थकों को भ्रमित किया है, बल्कि विपक्ष को भी उन पर तीखा प्रहार करने का मौका दिया है।

लालू प्रसाद यादव का यह प्रस्ताव, और नीतीश का जवाब, केवल एक बयान नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति के उन गहरे अंतर्विरोधों को उजागर करता है, जो राज्य की सियासत को प्रभावित करते हैं। लालू का कहना कि नीतीश “भागते रहते हैं,” सीधे तौर पर उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।

चुनावी समीकरणों की आहट

चुनाव से पहले बिहार में राजनीतिक उठापटक एक आम बात है। एनडीए में शामिल नीतीश कुमार के बार-बार यह कहने के बावजूद कि वह अपने गठबंधन में ही बने रहेंगे, अटकलें तेज हैं कि उनका अगला कदम क्या होगा। क्या नीतीश एनडीए के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाएंगे, या फिर कोई नया मोर्चा खोलेंगे?

नीतीश का यह कहना कि “हम दो बार गलती से इधर-उधर चले गए,” यह दर्शाता है कि वह अपने अतीत की राजनीति को स्वीकार करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी यह स्वीकारोक्ति जनता के भरोसे को फिर से हासिल कर सकेगी? बिहार की जनता उनके बयान पर विश्वास करेगी, या इसे चुनावी चाल मानकर खारिज कर देगी?

भविष्य की राह और जनता की उम्मीदें

बिहार में जनता के लिए विकास और स्थिरता सबसे बड़ा मुद्दा है। नीतीश कुमार ने अपनी छवि एक ‘सुशासन बाबू’ के रूप में बनाई है, लेकिन उनका राजनीतिक भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपने वादों को कितनी मजबूती से निभाते हैं। लालू यादव के बयान और नीतीश के जवाब के बीच बिहार की जनता एक बार फिर अपने नेतृत्व से स्पष्टता की उम्मीद कर रही है।

क्या नीतीश कुमार अपने वर्तमान गठबंधन में टिके रहेंगे, या फिर एक बार फिर से बिहार की राजनीति में कोई बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा? इन सवालों का जवाब केवल समय देगा, लेकिन फिलहाल बिहार की राजनीति में अनिश्चितता का माहौल है।

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