धनखड़ के इस्तीफे से उपराष्ट्रपति चुनाव की घड़ी नजदीक, अगला संवैधानिक प्रहरी…?

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के साथ ही देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद खाली हो गया है, अब नई नियुक्ति को लेकर सियासी चर्चा तेज हो चुकी है…
Khabari Chiraiya Desk : 74 वर्षीय जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक गलियारों में अचानक हलचल मचा दी। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को त्यागपत्र सौंपा, जिसे तत्क्षण प्रभाव से स्वीकार कर लिया गया। अगस्त 2022 में पदभार संभालने वाले धनखड़ का कार्यकाल 2027 तक था, लेकिन उनका समयपूर्व त्यागपत्र अब देश को एक नई संवैधानिक नियुक्ति की ओर ले गया है। इस घटनाक्रम के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है…अब अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? और इस पद तक पहुंचने की प्रक्रिया क्या है?
भारत में राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति सबसे बड़ा संवैधानिक पद होता है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है और आपात स्थिति में राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार संभालता है। इस पद के लिए किसी भी दल का चयन केवल राजनीतिक न होकर संतुलन, गरिमा और अनुभव को भी ध्यान में रखकर किया जाता है। धनखड़ से पहले यह जिम्मेदारी वेंकैया नायडू और हामिद अंसारी जैसे नेताओं ने निभाई है। ऐसे में नया चयन एक बार फिर केंद्र की सोच और संगठनात्मक रणनीति को भी दर्शाएगा।
भारत का नागरिक होना, न्यूनतम 35 वर्ष की आयु और राज्यसभा सदस्य बनने की योग्यता…ये तीन मुख्य शर्तें किसी व्यक्ति को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के योग्य बनाती हैं। इसके साथ यह भी जरूरी है कि उम्मीदवार किसी लाभ के पद पर न हो, यानी भारत सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय निकाय के अधीन कार्यरत न हो।
उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन तभी वैध माना जाता है जब कम-से-कम 20 सांसद प्रस्तावक और 20 सांसद समर्थक के रूप में दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करें। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी उम्मीदवार केवल गंभीर समर्थन के साथ ही चुनाव लड़ सके। नामांकन के बाद चुनाव की पूरी प्रक्रिया संसद के किसी एक सदन के महासचिव की देखरेख में होती है, जिन्हें चुनाव अधिकारी नियुक्त किया जाता है।
राष्ट्रपति चुनाव की तरह ही उपराष्ट्रपति का चयन भी अप्रत्यक्ष तरीके से होता है। लेकिन यहां एक महत्वपूर्ण अंतर है…इसमें केवल सांसद ही वोट डालते हैं, जबकि राष्ट्रपति चुनाव में विधानसभाओं के सदस्य भी भाग लेते हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा दोनों के नामांकित सदस्य भी वोट डाल सकते हैं, जो राष्ट्रपति चुनाव में नहीं कर सकते। कुल लगभग 790 सांसद (545 लोकसभा + 245 राज्यसभा) इस चुनाव में भाग लेते हैं।
यह चुनाव “सिंगल ट्रांसफरेबल वोट” प्रणाली के तहत होता है। प्रत्येक सांसद को एक वोट मिलता है, लेकिन उसे अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार उम्मीदवारों को क्रम देने होते हैं—जैसे 1, 2, 3…
गिनती के दौरान सबसे पहले पहली प्राथमिकता के वोटों की गिनती की जाती है। यदि कोई उम्मीदवार आवश्यक कोटे को पार कर जाता है तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। चुनाव जीतने के लिए जरूरी कोटा इस प्रकार तय होता है : (कुल वैध वोट / 2) +1
अगर कोई उम्मीदवार पहली प्राथमिकता में कोटा नहीं छू पाता तो सबसे कम वोट पाने वाले को बाहर कर दिया जाता है और उसके वोट दूसरी प्राथमिकता के अनुसार दूसरे उम्मीदवार को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक कोई एक प्रत्याशी कोटा हासिल नहीं कर लेता।
संसद में एनडीए का स्पष्ट बहुमत है। ऐसे में यह लगभग तय है कि अगला उपराष्ट्रपति उसी खेमे से होगा। लेकिन चेहरा कौन होगा, यह संगठन की रणनीति पर निर्भर करेगा। क्या यह कोई वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री होगा, कोई पूर्व राज्यपाल, या संगठन का अनुभवी नेता…यह तय करना प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष की रणनीति के संकेत देगा। धनखड़ भी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए ही उपराष्ट्रपति बने थे। इसलिए एक बार फिर राज्यपालों पर नजर टिकना स्वाभाविक है।
अगर चुनाव प्रक्रिया में कोई विवाद या कानूनी अड़चन आती है तो संविधान के अनुच्छेद 71 के अनुसार इसका निपटारा केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है। अन्य कोई संस्था या व्यक्ति इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
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