सेहत की बात आसान भाषा में समझिए…क्रिएटिनिन 1.3 और 1.5 में क्या फर्क है, किस उम्र में कितना होना चाहिए

डॉक्टरों की सलाह है कि यदि आपकी रिपोर्ट में क्रिएटिनिन 1.3 या उससे ऊपर दिख रहा है तो बिना देर किए किसी नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करें
अरुण शाही, मुजफ्फरपुर
किडनी की बीमारी से जूझ रहे मरीजों और उनके परिजनों में अक्सर यह सवाल होता है कि “क्रिएटिनिन कितना होना चाहिए?” और “1.3 और 1.5 में क्या फर्क होता है?” यह सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि रिपोर्ट में थोड़ा भी क्रिएटिनिन बढ़ने पर लोग घबरा जाते हैं, जबकि इसका सही अर्थ व्यक्ति की उम्र, लिंग और सेहत पर निर्भर करता है।
डॉक्टरों के मुताबिक, आम तौर पर पुरुषों में क्रिएटिनिन 0.7 से 1.3 mg/dl के बीच होना चाहिए, जबकि महिलाओं में यह सीमा 0.6 से 1.1 mg/dl मानी जाती है। बच्चों में क्रिएटिनिन का स्तर बहुत ही कम, यानी करीब 0.3 से 0.7 mg/dl तक ही होता है। मतलब ये कि एक ही रिपोर्ट का मतलब हर किसी के लिए अलग हो सकता है।
क्रिएटिनिन शरीर की मांसपेशियों से निकलने वाला एक पदार्थ है जो किडनी के जरिए बाहर निकलता है। जब किडनी कमजोर होती है तो यह शरीर में जमा होने लगता है और तभी इसका स्तर रिपोर्ट में बढ़ता दिखाई देता है। अगर किसी स्वस्थ पुरुष में क्रिएटिनिन 1.3 है तो वह सामान्य हो सकता है, लेकिन यही स्तर किसी महिला, बुजुर्ग या बच्चे के लिए खतरनाक माना जाएगा।
अब सवाल आता है कि 1.3 और 1.5 में क्या फर्क है? विशेषज्ञ बताते हैं कि 1.3 को शुरुआती चेतावनी की तरह देखा जाता है यानी आपकी किडनी थोड़ा कमजोर होने लगी है। लेकिन जब यह 1.5 तक पहुंचता है तो डॉक्टर गंभीरता से लेने की सलाह देते हैं, क्योंकि यही वह बिंदु होता है जहां से क्रॉनिक किडनी डिजीज यानी CKD की शुरुआत मानी जाती है। यही कारण है कि कुछ डॉक्टर 1.3 पर ही परहेज़ और जांच शुरू करवा देते हैं, जबकि कुछ डॉक्टर 1.5 के बाद विशेष निगरानी में रखने की सलाह देते हैं।
हालांकि, सिर्फ क्रिएटिनिन देखकर कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। इसके साथ eGFR (Estimated Glomerular Filtration Rate), पेशाब की रिपोर्ट और कभी-कभी किडनी का अल्ट्रासाउंड भी करवाना जरूरी होता है। इन सभी रिपोर्टों को मिलाकर ही डॉक्टर यह तय करते हैं कि किडनी की हालत कितनी खराब है और इलाज की जरूरत कितनी है।
डॉक्टरों की सलाह है कि यदि आपकी रिपोर्ट में क्रिएटिनिन 1.3 या उससे ऊपर दिख रहा है तो बिना देर किए किसी नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करें। समय रहते परहेज़ और इलाज शुरू कर देने से डायलिसिस तक पहुंचने से बचा जा सकता है। साथ ही, खानपान और जीवनशैली में सुधार लाकर किडनी को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
याद रखिए…किडनी की बीमारी चुपचाप बढ़ती है, लेकिन समय पर सावधानी और सही जानकारी से इसे रोका जा सकता है।
यह भी पढ़ें… आज के सितारे क्या कहते हैं, जानिए सभी 12 राशियों का पूरा हाल
यह भी पढ़ें… डूबते गांव, टूटती राहें और बेसहारा होता ग्रामीण जीवन
यह भी पढ़ें… दो वोटर आईडी रखने पर हो सकती है जेल की सजा
यह भी पढ़ें… बिहार : नीतीश कैबिनेट का फैसला, हर विधानसभा में खुलेगी डिजिटल लाइब्रेरी
आगे की खबरों के लिए आप हमारी वेबसाइट पर बने रहें..
