पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर की परमाणु धमकियां

Khabari Chiraiya Desk: भारत को संयम और दृढ़ प्रतिरोध, दोनों का रास्ता अपनाना होगा, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह साफ संदेश देना चाहिए कि परमाणु लफ्फाज़ी का मंच पर कोई स्थान नहीं है।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख और फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने फ्लोरिडा के टांपा में एक निजी कार्यक्रम के दौरान जिस अंदाज में भारत को धमकी दी, वह न केवल उकसाने वाला था, बल्कि गैर-जिम्मेदाराना भी। उन्होंने खुले तौर पर कहा कि अगर पाकिस्तान भारत के साथ संघर्ष के कगार पर पहुंचा तो वह “अपने साथ आधी दुनिया को भी डुबो देगा।” यह बयान केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह दर्शाता है कि पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व परमाणु हथियारों को राजनीतिक और कूटनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने से हिचकता नहीं है।
मुनीर यहीं नहीं रुके। उन्होंने सिंधु नदी पर भारत के भावी पुलों और ढांचों को मिसाइलों से उड़ाने की धमकी दी और सिंधु जल संधि को निलंबित करने को करोड़ों लोगों के लिए भुखमरी का खतरा बताया। यह बयानबाज़ी साफ संकेत देती है कि पाकिस्तान अपनी घरेलू विफलताओं, आर्थिक संकट और कूटनीतिक अलगाव से ध्यान हटाने के लिए पुराने फार्मूले पर लौट आया है…सीमा पार तनाव को भड़काना और दुश्मन को दोषी ठहराना।
असीम मुनीर का यह अमेरिका दौरा उनकी दूसरी यात्रा थी और दोनों यात्राएं ऐसे समय में हुईं जब भारत-पाकिस्तान संबंध तनावपूर्ण हैं। अमेरिकी सैन्य नेतृत्व से बार-बार मुलाकात और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की खुली प्रशंसा, यहां तक कि उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित करने का दावा, यह बताता है कि पाकिस्तान वाशिंगटन में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है। यह कूटनीति से ज्यादा राजनीतिक समीकरण साधने का प्रयास लगता है।
भारत के लिए इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अहम सबक यह है कि भावनात्मक प्रतिक्रिया देने के बजाय दीर्घकालिक रणनीति पर टिके रहना चाहिए। सीमाई ढांचों की सुरक्षा, जल-संधि के कानूनी प्रावधानों का पालन और सामरिक प्रतिरोधक क्षमता को चुपचाप और मजबूत तरीके से पेश करना ही सही रास्ता है। पाकिस्तान की उग्र बयानबाज़ी का जवाब उसी भाषा में देने के बजाय, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके गैर-जिम्मेदार रवैये को उजागर करना भारत के हित में होगा।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर अमेरिका, को भी यह समझना होगा कि ऐसे बयान सिर्फ क्षेत्रीय अस्थिरता नहीं बढ़ाते, बल्कि वैश्विक सुरक्षा को भी खतरे में डालते हैं। परमाणु हथियारों से जुड़ी गैर-जिम्मेदार बयानबाज़ी को किसी भी मंच पर वैधता नहीं दी जानी चाहिए।
असीम मुनीर का “आधी दुनिया” वाला बयान इतिहास में गैर-जिम्मेदार और अस्थिर नेतृत्व के उदाहरण के तौर पर दर्ज होना चाहिए…नीति के रूप में नहीं। दक्षिण एशिया की शांति और स्थिरता, युद्धोन्माद से नहीं बल्कि संयम, नियम-आधारित समझौतों और परिपक्व कूटनीति से ही सुनिश्चित की जा सकती है।
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