जानें भारत के बंटवारे पर विभाजन का नया विवाद…एनसीईआरटी मॉड्यूल ने बताए तीन ‘मुख्य अपराधी’

- जिन्ना ने बंटवारे की मांग की, कांग्रेस ने इसे स्वीकार किया और माउंटबेटन ने इसे लागू कर दिया
Khabari Chiraiya Desk : भारत के बंटवारे पर हमेशा से ही इतिहासकारों और राजनीतिक विश्लेषकों में मतभेद रहा है। अब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने एक नए विशेष मॉड्यूल में इसे लेकर सीधी और तीखी टिप्पणी की है। इस मॉड्यूल में साफ लिखा गया है कि भारत के विभाजन के लिए तीन प्रमुख शख्सियत जिम्मेदार थीं…मुहम्मद अली जिन्ना, कांग्रेस का नेतृत्व और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस से जुड़ा संदर्भ
14 अगस्त को हर साल मनाए जाने वाले “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” के लिए तैयार किए गए इस मॉड्यूल में विभाजन के कारणों और परिणामों पर विस्तार से चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि जिन्ना ने बंटवारे की मांग की, कांग्रेस ने इसे स्वीकार किया और माउंटबेटन ने इसे लागू कर दिया। यही तीनों मिलकर भारत के विभाजन के सबसे बड़े कारक बने।
नेहरू का भाषण और ऐतिहासिक दस्तावेज
मॉड्यूल में जुलाई 1947 में दिए गए पंडित जवाहरलाल नेहरू के भाषण का भी जिक्र है। इसमें उन्होंने कहा था, “हमें या तो विभाजन स्वीकार करना होगा या फिर निरंतर संघर्ष और अराजकता को झेलना होगा। विभाजन बुरा है, लेकिन गृहयुद्ध की कीमत उससे कहीं अधिक होगी।” इसी संदर्भ को जोड़ते हुए छात्रों के लिए तैयार किए गए अध्याय में विभाजन की विवशता को रेखांकित किया गया है।
दो अलग-अलग मॉड्यूल
एनसीईआरटी ने इस विषय पर दो स्तरों के मॉड्यूल प्रकाशित किए हैं-एक 6वीं से 8वीं कक्षा के लिए और दूसरा 9वीं से 12वीं कक्षा के लिए। ये सामग्री नियमित पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा नहीं है, बल्कि प्रोजेक्ट, बहस और पोस्टरों के माध्यम से छात्रों को पढ़ाई जा रही है। दोनों मॉड्यूल की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस संदेश से होती है, जिसमें उन्होंने 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस घोषित करते हुए कहा था कि “विभाजन का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता। लाखों लोग विस्थापित हुए और हजारों ने अपनी जान गंवाई।”
मॉड्यूल में दर्ज टिप्पणियों के अनुसार, महात्मा गांधी ने विभाजन का विरोध किया लेकिन अंततः नेहरू और पटेल के गृहयुद्ध के भय के चलते मान जाने पर उन्होंने भी अपना विरोध छोड़ दिया। पटेल ने इसे “कड़वी दवा” कहा जबकि नेहरू ने “बुरा लेकिन बेहद जरूरी” कदम बताया।
विभाजन को लेकर नई बहस
एनसीईआरटी का यह नया निष्कर्ष एक बार फिर उस पुराने सवाल को जिंदा कर देता है कि क्या विभाजन अपरिहार्य था या इसे टाला जा सकता था। मॉड्यूल का दावा है कि विभाजन केवल गलत विचारों का नतीजा था और यह किसी ऐतिहासिक मजबूरी के कारण नहीं हुआ।
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