अलास्का समिट में पुतिन के आगे नरम पड़े ट्रंप, यूक्रेन जंग पर नतीजा शून्य

- ट्रंप ने टैरिफ और प्रतिबंध की बात टाल दी और मुलाकात को 10 में से 10 अंक देते हुए इसे शानदार करार दिया
Khabari Chiraiya Desk : अलास्का के जॉइंट बेस एल्मेंडॉर्फ-रिचर्डसन में 15 अगस्त को हुई अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तीन घंटे लंबी मुलाकात पूरी दुनिया में सुर्खियां बनी। शुरुआत से ही उम्मीद जताई जा रही थी कि बातचीत के बाद कोई सीजफायर या शांति का रास्ता निकलेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वार्ता के बाद ट्रंप का रुख बिल्कुल बदल चुका था। उन्होंने कहा कि बातचीत बहुत अच्छी रही, दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्माहट आई है और यह अहम है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी परमाणु शक्तियां बेहतर तालमेल बनाए रखें।
मगर, यही ट्रंप कुछ ही हफ्ते पहले तक रूस को अल्टीमेटम दे रहे थे। उन्होंने साफ कहा था कि यदि पचास दिनों में यूक्रेन युद्ध नहीं रुका तो रूस और उसके साझेदार देशों पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। यह बयान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कड़ा संदेश माना जा रहा था। लेकिन पुतिन से आमने-सामने की मुलाकात के बाद ट्रंप ने संकेत दिए कि अभी किसी नए प्रतिबंध या टैरिफ की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कुछ हफ्तों बाद इस पर सोचना पड़े, लेकिन फिलहाल तुरंत कोई कदम उठाना उचित नहीं होगा।
रूस ने शुरू से ही अमेरिकी धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया। क्रेमलिन के प्रवक्ता ने कहा कि इन चेतावनियों का रूस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। वहीं पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने ट्रंप को “नाटकीय” बताते हुए कहा कि रूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों से उसका कुछ नहीं बिगड़ता। आर्थिक मोर्चे पर भी रूस ने अपनी मजबूती का प्रदर्शन किया। पश्चिमी दबाव के बावजूद मॉस्को स्टॉक एक्सचेंज में 2.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसने यह संदेश दिया कि रूस की अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत स्थिर है और अमेरिकी अल्टीमेटम का कोई असर नहीं पड़ा।
यही मजबूती पुतिन की रणनीति में झलकती रही। उन्होंने स्पष्ट किया कि यूक्रेन में शांति केवल रूस की शर्तों पर ही संभव है। यानी यदि किसी तरह की बातचीत या समझौता होगा तो वह उन्हीं शर्तों के तहत होगा जो रूस तय करेगा। अलास्का की बातचीत में इस बात की झलक साफ देखने को मिली।
तीन घंटे लंबी वार्ता के बाद कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। न तो सीजफायर पर सहमति बनी और न ही युद्ध खत्म करने का कोई स्पष्ट रोडमैप तय हो सका। ट्रंप ने जरूर यह कहा कि वह नाटो सहयोगियों और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से आगे की चर्चा करेंगे, लेकिन उन्होंने अपने अल्टीमेटम को पूरी तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन की सख्ती और रूस की स्थिर अर्थव्यवस्था ने ट्रंप को बैकफुट पर ला दिया। अंतरराष्ट्रीय दबाव और परमाणु ताकतों के बीच संतुलन बनाए रखने की बाध्यता ने भी उन्हें अपना रुख बदलने के लिए मजबूर किया। यही कारण है कि जिस बैठक से दुनिया को बड़े फैसले की उम्मीद थी, वह केवल बयानों और औपचारिकताओं तक सीमित रह गई।
अलास्का समिट ने यह साफ कर दिया कि रूस अपने फैसले पर अडिग है और अमेरिका अभी तुरंत कोई कठोर कदम उठाने के मूड में नहीं है। नतीजा यह निकला कि यूक्रेन युद्ध फिलहाल जस का तस जारी रहेगा और दुनिया को अगले कदम के लिए इंतजार करना होगा।
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