वृंदावन : प्रभु की हृदय डायरी और सच्ची भक्ति का रहस्य

- जीवा से नहीं हृदय से की गई भक्ति ही पाती है प्रभु का सच्चा स्नेह
Khabari Chiraiya Desk : वृंदावन की पावन भूमि पर शत्रुघ्न प्रभु जी महाराज ने एक सत्संग के दौरान भक्ति और भगवान के रिश्ते का अद्भुत रहस्य उजागर किया। उन्होंने कहा कि जो लोग केवल जीभ से प्रभु का नाम लेते हैं, उन्हें भगवान भक्त मानते तो हैं, लेकिन जो भक्ति हृदय से निकलती है, जो प्रेम भीतर से उमड़कर प्रभु के चरणों तक पहुँचती है, उस भक्ति को स्वयं भगवान भी नमन करते हैं। ऐसे भक्तों का नाम प्रभु अपनी हृदय रूपी डायरी में दर्ज करते हैं।
नारद और हनुमान प्रसंग से निकली सीख
महाराज जी ने कथा को विस्तार देते हुए बताया कि एक बार नारदमुनि वीणा बजाते हुए प्रभु श्रीराम के द्वार पर पहुँचे। द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे थे। जब नारदजी ने जिज्ञासावश पूछा कि प्रभु इस समय क्या कर रहे हैं, तो हनुमान जी ने कहा कि प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे हैं। नारद मुनि भीतर पहुँचे और देखा कि भगवान श्रीराम सचमुच कुछ लिख रहे हैं।
जब नारद जी ने कारण पूछा, तो प्रभु ने कहा—“मैं इसमें अपने उन भक्तों के नाम लिखता हूँ, जो नित्य मेरा भजन करते हैं।” नारद जी ने जब देखा, तो पाया कि उनका नाम सबसे ऊपर दर्ज है। गर्व से भरकर वे बाहर आए, लेकिन आश्चर्यचकित रह गए जब उन्होंने देखा कि हनुमान जी का नाम उस बही खाते में कहीं नहीं है।
हनुमान का विनम्र उत्तर
नारद जी ने यह बात हनुमान जी से कही तो उन्होंने सहज भाव से कहा-“शायद प्रभु ने मुझे योग्य नहीं समझा होगा। कोई बात नहीं।” उनकी विनम्रता देखकर नारद जी और चकित हुए। हनुमान ने आगे कहा कि प्रभु एक और डायरी भी रखते हैं, जिसमें वे विशेष नाम दर्ज करते हैं।
प्रभु की हृदय डायरी का खुलासा
नारद जी फिर उत्सुकता से प्रभु के पास पहुँचे और उस डायरी को देखने का आग्रह किया। पहले तो प्रभु टालते रहे, लेकिन नारद के बार-बार निवेदन करने पर मुस्कुराकर बोले-“यह डायरी तुम्हारे काम की नहीं है, इसमें मैं उन भक्तों के नाम लिखता हूँ जिनको मैं स्वयं नित्य भजता हूँ।”
नारद ने जैसे ही डायरी खोली, उनकी आँखें आश्चर्य और भावनाओं से भर उठीं। सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम लिखा था। यह देखकर नारद जी का सारा गर्व टूट गया और उन्हें यह बोध हुआ कि सच्ची भक्ति केवल शब्दों से नहीं, बल्कि हृदय की गहराइयों से की जाती है।
कथा का तात्पर्य
इस कथा का संदेश साफ है, जो लोग भगवान को केवल जिह्वा से भजते हैं, वे प्रभु के भक्त कहलाते हैं, लेकिन जो भक्ति दिल से की जाती है, वह स्वयं प्रभु को बाँध लेती है। ऐसे भक्तों को प्रभु अपने हृदय में बसाते हैं, उन्हें अपनी हृदय डायरी में दर्ज करते हैं और स्वयं उनका स्मरण करते हैं। यही भक्ति की परम साधना है।
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