हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के संबंधों में अप्रत्याशित तनाव

अमेरिका का दोहरा रवैया : ट्रंप ने भारत पर लगाया 50% टैरिफ, वजह बताया रूस से तेल खरीदना, दूसरी ओर, अमेरिका-रूस व्यापार में 20% की वृद्धि का दावा खुद ट्रंप ने किया
Khabari Chiraiya Desk : हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के संबंधों में अप्रत्याशित तनाव देखने को मिला है। वजह बनी है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का वो ऐलान, जिसमें उन्होंने भारत पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी। और इसका कारण? भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदना। ट्रंप का दावा है कि ऐसा कर भारत यूक्रेन के खिलाफ रूस की अप्रत्यक्ष मदद कर रहा है। लेकिन क्या वाकई मामला इतना सीधा है?
भारत लंबे समय से रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में सहयोग करता आया है। ये संबंध किसी युद्ध के कारण नहीं, बल्कि कूटनीतिक और आर्थिक संतुलन के तहत हैं। भारत ने हमेशा अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है, न कि किसी ब्लॉक पॉलिटिक्स को। परंतु अमेरिका द्वारा टैरिफ के रूप में की गई यह सज़ा दर्शाती है कि वॉशिंगटन की विदेश नीति अब भी “माई वे और हाईवे” सिद्धांत पर अडिग है।
हास्यास्पद तब होता है जब यही ट्रंप 15 अगस्त को यह बयान देते हैं कि उनके दूसरे कार्यकाल में अमेरिका और रूस के बीच व्यापार में 20% की वृद्धि हुई है। यानी एक ओर वे भारत को रूस से व्यापार के लिए दंडित करते हैं, दूसरी ओर खुद रूस से आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर रहे हैं। यह दोहरापन अमेरिका की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है।
अलास्का में आयोजित शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी स्पष्ट कहा कि ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद अमेरिका-रूस व्यापार में तेज़ी आई है। उन्होंने निवेश, डिजिटल टेक्नोलॉजी और अंतरिक्ष क्षेत्र में संभावनाओं की बात की। तो क्या अमेरिका भारत से भी उसी मापदंड की अपेक्षा नहीं रख सकता?
भारत सरकार ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए अमेरिकी टैरिफ को अनुचित और भेदभावपूर्ण बताया है। विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा है कि जब चीन और यूरोपीय संघ जैसे देश बिना किसी प्रतिबंध के रूसी तेल का आयात कर रहे हैं तो केवल भारत को दंडित करना न्यायसंगत नहीं।
यह पूरी स्थिति न केवल भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा पर सवाल उठाती है, बल्कि वैश्विक कूटनीति में निष्पक्षता और संप्रभुता के सम्मान की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है। भारत को चाहिए कि वह अपने हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक मंचों पर इस तरह की नीतियों की आलोचना करे और समानता की मांग को मजबूती से रखे।
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