September 5, 2025

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बिहार : राजद की पिछलग्गू क्यों बनती जा रही कांग्रेस…

  • बिहार की राजनीति में राहुल गांधी की औकात पर सवाल, विस चुनाव से पहले कांग्रेस की सियासी जमीन खिसकने लगी

Khabari Chiraiya Desk:  बिहार की सियासत में चुनावी जंग का बिगुल बज चुका है। मैदान सज चुका है और अब तलवारें खिंच चुकी हैं। इस माहौल में प्रशांत किशोर ने जो बयान दिया है, उसने राजनीति की पूरी दिशा पर बहस छेड़ दी है। राहुल गांधी, जो महागठबंधन के नेता बनकर सड़कों पर वोटर अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं, उन्हें पीके ने चुटकी भर में खारिज कर दिया। सवाल यह नहीं कि उन्होंने राहुल गांधी को “औकातहीन” कह दिया, बल्कि बड़ा सवाल यह है कि क्या सचमुच बिहार की ज़मीन पर कांग्रेस अब उतनी ही बेअसर हो चुकी है, जितना यह हमला दर्शाता है।

राहुल गांधी पूर्णिया और अररिया में गाजे-बाजे के साथ उतरे। महागठबंधन के झंडे लहराए, नेताओं की कतार खड़ी हुई और भाजपा पर ताबड़तोड़ हमले भी किए गए। लेकिन प्रशांत किशोर ने यह कहकर पूरा खेल बिगाड़ दिया कि इन सभाओं का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने तंज कसा कि महागठबंधन अपनी पूरी ताकत झोंककर भीड़ जुटा सकता है, लेकिन असली कसौटी यह है कि जनता खुद कितनी दिलचस्पी से आती है। उनके मुताबिक, राहुल गांधी की सभा में झंडा ज़्यादा दिखाई देता है, लोग कम। यह कटाक्ष केवल कांग्रेस की कमज़ोरी नहीं, बल्कि राहुल गांधी की बिहार में स्वीकार्यता पर भी गहरी चोट है।

कभी कांग्रेस बिहार की राजनीति की धुरी हुआ करती थी। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर शुरुआती दशकों तक उसकी जड़ें यहां गहरी थीं। लेकिन आज हालत यह है कि उसे राजद की पिछलग्गू पार्टी कहा जा रहा है। पीके का तंज केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि एक सख्त सच्चाई का आईना है। बिहार की जनता जानती है कि महागठबंधन की रैलियां ज़्यादा दिखावा हैं और वास्तविक जनसमर्थन वहां से गायब है। यही वजह है कि पीके ने कहा कि राहुल गांधी को यहां कोई गंभीरता से नहीं लेता।

सवाल यह भी है कि कांग्रेस आखिर चाहती क्या है? अगर वह सिर्फ राजद के सहारे चुनावी मैदान में उतरेगी तो उसका भविष्य और भी धुंधला होगा। प्रशांत किशोर का यह हमला दरअसल कांग्रेस को आगाह करने जैसा है कि अब सिर्फ नाम और खानदानी राजनीति के भरोसे बिहार की जनता को साधा नहीं जा सकता। यहां राजनीति जमीनी पकड़ और जनता से सीधे जुड़ाव से तय होती है।

इस वक्त बिहार की राजनीति में मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। एक ओर महागठबंधन राहुल गांधी को सामने रखकर ताकत दिखाना चाहता है, दूसरी ओर प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार उनकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कांग्रेस का घटता जनाधार और लगातार सिकुड़ता राजनीतिक दायरा इस बहस को और गहरा बना देता है।

असल सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा वास्तव में कोई असर डाल पाएगी या फिर यह महज़ चुनावी शोर तक सिमट जाएगी। जनता अब सिर्फ नारों और बयानों से प्रभावित नहीं होती। उसे ठोस नेतृत्व चाहिए, जमीन से जुड़ी रणनीति चाहिए। और यही वह बिंदु है जहां राहुल गांधी कमजोर पड़ जाते हैं।

आज की हकीकत यही है कि बिहार की राजनीति में कांग्रेस की पहचान मिटती जा रही है और प्रशांत किशोर का हमला उसी कड़वी सच्चाई को उजागर करता है। अगर कांग्रेस ने अपनी राह नहीं बदली तो आने वाले चुनाव उसके लिए और भी भयावह साबित होंगे। पीके के शब्द भले कटाक्ष हों, लेकिन वे उस हकीकत का बयान हैं जिससे कांग्रेस चाहकर भी आंख नहीं मूंद सकती।

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