September 5, 2025

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दिल्ली: फर्जी ई-मेल से कॉलेजों में दहशत

दिल्ली
  • बार-बार धमकी मिलने के बावजूद दिल्ली पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुंच पाई है। हर बार वीपीएन का बहाना देकर जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है

Khabari Chiraiya Desk नई दिल्ली : राजधानी के कॉलेजों को एक बार फिर बम से उड़ाने की धमकी मिली। जांच के बाद यह फर्जी साबित हुई, लेकिन असली चिंता कहीं गहरी है। आखिर क्यों बार-बार मेल भेजने वाले गिरफ्त से बाहर हैं? यह केवल पुलिस की जांच की नाकामी नहीं, बल्कि भारत की साइबर तकनीक और सुरक्षा तंत्र की कमजोरी का स्पष्ट संकेत है। यदि हमारी प्रणाली मजबूत होती तो अपराधी तक पहुंचने में देर नहीं लगती।

दिल्ली के नामचीन कॉलेजों को ई-मेल के जरिए बम से उड़ाने की धमकी दी गई। चाणक्यपुरी स्थित जीसस एंड मैरी कॉलेज समेत करीब 20 संस्थान अचानक डर और अफरातफरी के माहौल में आ गए। प्रशासन ने तुरंत पुलिस को सूचना दी और जांच शुरू हुई। कुछ ही घंटों में पुलिस ने इसे फर्जी घोषित कर दिया। लेकिन सवाल उठता है कि हर बार यही नतीजा क्यों निकलता है और मेल भेजने वाले आखिरकार कब तक अज्ञात बने रहेंगे?

यह कोई नई घटना नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली के कई स्कूलों को इस तरह की धमकी भरे मेल मिल चुके हैं। हर बार पुलिस जांच करती है, पर असली अपराधी की गिरफ्तारी नहीं हो पाती। इसका कारण बताने में ‘वीपीएन’ सबसे बड़ा बहाना बन गया है। जांच एजेंसियां मान लेती हैं कि वीपीएन के कारण ई-मेल भेजने वाले का ठिकाना पता नहीं चल पा रहा। लेकिन अगर तकनीक अपराधी को बचा सकती है तो तकनीक ही उसे पकड़ने का साधन क्यों नहीं बन पा रही?

सच्चाई यही है कि भारत की साइबर सुरक्षा क्षमता अब भी कमजोर है। विकसित देशों में ऐसे मामलों में मिनटों में अपराधियों का डिजिटल ट्रैक तैयार कर लिया जाता है। वहां पुलिस और साइबर एजेंसियों के पास इतना आधुनिक ढांचा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग होता है कि अपराधी जल्दी बच नहीं पाते। इसके विपरीत भारत में जांच की प्रक्रिया लंबी, धीमी और जटिल है। परिणाम यह कि अपराधी बार-बार मेल भेजकर पूरे सिस्टम की खिल्ली उड़ाते हैं।

इन धमकियों का मनोवैज्ञानिक असर भी गहरा होता है। कॉलेजों के छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों में असुरक्षा का भाव पनपता है। कक्षाएं बाधित होती हैं, प्रशासनिक संसाधन व्यर्थ जाते हैं और सुरक्षा एजेंसियां हर बार एक ही जवाब देकर पीछे हट जाती हैं कि मामला फर्जी निकला। यह राहत से ज्यादा शर्मिंदगी का विषय है।

अब समय आ गया है कि सरकार और दिल्ली पुलिस अपनी साइबर जांच प्रणाली को विश्वस्तरीय बनाए। मेल ट्रैकिंग की क्षमता बढ़ाई जाए, वीपीएन तोड़ने के लिए अत्याधुनिक तकनीक अपनाई जाए और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ त्वरित सहयोग की व्यवस्था हो। इसके साथ ही, ऐसे अपराधियों को पकड़कर त्वरित सजा दी जानी चाहिए ताकि दोबारा कोई इस तरह का दुस्साहस न कर सके।

बार-बार की ई-मेल धमकियां केवल फर्जी अलार्म नहीं हैं, बल्कि हमारी सुरक्षा ढांचे की कमजोर कड़ी हैं। जब तक इन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाएगा और ठोस परिणाम सामने नहीं आएंगे, तब तक दिल्ली और देश के शैक्षणिक संस्थान डर और अनिश्चितता के साये में ही पढ़ाई करते रहेंगे। यह सिर्फ सुरक्षा का मुद्दा नहीं है, यह राष्ट्र की तकनीकी गरिमा और विश्वसनीयता का सवाल है।

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