हिंदी दिवस: अपने ही घर बेगानी हिंदी

हिंदी दिवस पर मंच से लिए गए संकल्प तब ही सार्थक होंगे जब वे कार्यालयों की फाइलों और आम लोगों की जिंदगी में दिखें
Khabari Chiraiya Desk : आज 14 सितंबर को पूरा देश हिंदी दिवस मना रहा है। यह दिन सिर्फ उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी है। अंग्रेजों को भारत छोड़े कई दशक हो गए और हिंदी को संविधान सभा से राष्ट्रभाषा का दर्जा मिले 76 साल बीत चुके हैं, लेकिन अफसोस कि हिंदी आज भी हमारे सरकारी और सामाजिक कामकाज में दूसरे दर्जे की भाषा बनी हुई है। हिंदी दिवस के मौके पर स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी दफ्तरों और स्वयंसेवी संस्थाओं में एक माह पहले से ही हिंदी पखवाड़ा और संगोष्ठियों की तैयारी शुरू हो जाती है। बच्चों की कविताएं, भाषण और सांस्कृतिक कार्यक्रम से मंच गूंज उठता है। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के भाषणों में हिंदी के विकास के संकल्प दोहराए जाते हैं।
कार्यक्रम के बाद संकल्प क्यों ठंडे पड़ जाते हैं
विडंबना यह है कि जैसे ही समारोह खत्म होता है, वही लोग उपस्थिति रजिस्टर पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं और रोजमर्रा के कामकाज में फिर अंग्रेजी का वर्चस्व कायम हो जाता है। हिंदी एक बार फिर अगले 14 सितंबर का इंतजार करने लगती है। कविवर नेपाली ने कहा था -“हिंदी है भारत की बोली, उसे अपने आप पनपने दो।” लेकिन हमारी दिनचर्या में वह पनपने की जगह जगह-जगह ठोकर खाती है।
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सरकारी दफ्तरों में अंग्रेजी का बोलबाला
सच्चाई यह है कि सरकारी दफ्तरों से निकलने वाले 80-85 प्रतिशत पत्राचार अंग्रेजी में होते हैं। रेलवे स्टेशनों पर हिंदी में कामकाज के स्लोगन जरूर नजर आते हैं, मगर टिकट, आरक्षण चार्ट और घोषणाएं अब भी अंग्रेजी में छपते-पढ़े जाते हैं। बैंकों में खाताधारकों की पासबुक, स्टेटमेंट और ऑनलाइन मैसेज अंग्रेजी में रहते हैं, जिन्हें ग्रामीण या कम पढ़े-लिखे लोग समझ नहीं पाते। जिला प्रशासन, परिवहन विभाग और इंजीनियरिंग शाखाओं का 90 प्रतिशत काम अंग्रेजी में चलता है। विश्वविद्यालयों के नोटिफिकेशन, नामांकन फॉर्म और परीक्षा कार्यक्रम भी अंग्रेजी व हिंदी दोनों में छपते हैं, लेकिन प्रायोरिटी अंग्रेजी को ही दी जाती है।
हिंदी दिवस को औपचारिकता से आगे ले जाएं
यह दिन केवल भाषण देने या स्लोगन लगाने के लिए नहीं होना चाहिए। जब तक सरकारी विभाग, बैंक, रेलवे, न्यायालय और विश्वविद्यालय अपने आधिकारिक काम में हिंदी को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक हिंदी दिवस महज एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा।
अब समय कर्म का
आज हिंदी दिवस पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हिंदी को अपनी दिनचर्या में अपनाएंगे। कार्यालयीन आदेशों, पत्राचार, नोटिस और घोषणाओं को हिंदी में लाना अनिवार्य किया जाए। यही असली सम्मान होगा हिंदी का, तभी यह दिवस सार्थक बनेगा और राष्ट्रभाषा के विकास का सपना साकार होगा।
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