October 14, 2025

खबरी चिरईया

नजर हर खबर पर

राजनीति : बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर दिल्ली में चली मैराथन बैठक के बाद कांग्रेस में टिकटों पर सहमति

  • दिल्ली में हुई सात घंटे लंबी बैठक में सीटवार समीक्षा के बाद कांग्रेस 40 सीटों पर नाम तय करने के करीब है, पार्टी इस बार युवाओं और साफ छवि वाले चेहरों को मैदान में उतारना चाहती है

Khabari Chiraiya Desk : दिल्ली में हुई चौथी स्क्रीनिंग कमेटी बैठक के बाद कांग्रेस लगभग 40 सीटों पर नाम तय करने के करीब है। यह संकेत है कि पार्टी इस बार आख़िरी वक्त की हड़बड़ी से बचना चाहती है। रणनीति का केंद्र नए चेहरों पर भरोसा, असंतोष झेल रहे विधायकों का पुनर्मूल्यांकन और कुछ की सीट बदलने का प्रयोग है। महागठबंधन में सीट बंटवारे की औपचारिक घोषणा भले बाकी हो, कांग्रेस अपने हिस्से पर शीघ्र फैसला कर मैदान में शुरुआती बढ़त साधने की तैयारी में है।

बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का यह सक्रिय तेवर स्वागतयोग्य है, क्योंकि पार्टी लंबे समय से एक समस्या से जूझती रही है। उम्मीदवारों की देर से घोषणा, कमजोर ज़मीनी तैयारी और संदेश की अस्पष्टता। सात घंटे चली मैराथन बैठक और उसमें हुई सीटवार समीक्षा बताती है कि इस बार संगठन चुनाव को प्रबंधन की तरह नहीं, अभियान की तरह लेना चाहता है। लेकिन यही वह क्षण है जहां साहस और सूझबूझ का संतुलन सबसे अधिक जरूरी हो जाता है। नए चेहरों पर दांव तभी राजनीति बदलता है जब चयन डेटा-आधारित हो, भीतरी गुटबाज़ी को न्यूनतम रखा जाए और टिकट मिलने के साथ ही बूथ-स्तरीय मशीनरी उम्मीदवार के हवाले कर दी जाए।

कांग्रेस के सामने पहली हकीकत यह है कि बिहार में चुनाव सामाजिक-समीकरणों का गणित मात्र नहीं, बल्कि भरोसे की लड़ाई भी है। जिन सीटों पर असंतोष है, वहां चेहरा बदलना पर्याप्त नहीं, वहां संदेश भी बदलना होगा। मतदाता को महसूस हो कि टिकट मेरिट, साफ छवि और स्थानीय काम-काज के आधार पर मिला है, न कि किसी खेमे की सिफारिश पर। यह धारणा बने बिना नया चेहरा भी पुरानी निराशा में बदल सकता है।

दूसरी चुनौती समय की है। महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की देरी अगर लंबी खिंचती है, तो शुरुआती गति सुस्त हो जाएगी। कांग्रेस को चाहिए कि साझा फार्मूला तय होते ही अपने उम्मीदवारों की सूची सार्वजनिक करे और साथ ही प्रत्येक सीट के लिए तीन-स्तरीय ‘टास्क-मैट्रिक्स’ जारी करे—पहला, 10 दिन में संगठन सुदृढ़ीकरण; दूसरा, 20 दिन में मुद्दों का लोकलाइजेशन; तीसरा, 30 दिन में माइक्रो-बूथ कैनवसिंग। यह सार्वजनिक अनुशासन उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं दोनों को स्पष्ट लक्ष्य देगा।

तीसरा मोर्चा कथा-निर्माण का है। बिहार में बेरोज़गारी, पलायन, कृषि-आधारित आय, स्कूल-स्वास्थ्य प्रणालियों की गुणवत्ता और बुनियादी ढांचे की असमानता—ये पाँच ऐसे स्तंभ हैं जिन पर कांग्रेस अपना सकारात्मक एजेंडा खड़ा कर सकती है। केवल सत्ता-विरोधी विमर्श या गठबंधन-गणित से आगे बढ़कर अगर पार्टी प्रत्येक उम्मीदवार को स्थानीय विकास-रोडमैप के साथ मैदान में उतारे—अनुमानित लागत, समयसीमा और जवाबदेही की स्पष्ट रेखा—तो चुनावी चर्चा रेटोरिक से नीति पर शिफ्ट होगी।

चौथी और सबसे नाजुक ज़रूरत विद्रोह-प्रबंधन की है। टिकट कटने वालों का क्रोध जितनी तेजी से फूटता है, उतनी ही तेजी से उन्हें संगठनात्मक भूमिकाओं में समेटना होगा। सम्मानजनक संवाद, अभियान-संसाधनों की पारदर्शी साझेदारी और स्थानीय नेतृत्व को सार्वजनिक मान्यता—ये उपाय बिखराव रोकते हैं।

अंततः, कांग्रेस के पास इस चुनाव में अवसर भी है और कसौटी भी। अवसर इसलिए कि शुरुआती तैयारी, नए चेहरों का जोखिम और शीघ्र घोषणा का संकेत एक ताज़ा शुरुआत देता है। कसौटी इसलिए कि हर सीट पर उम्मीदवार चयन केवल समीकरण नहीं, विश्वास का अनुबंध है। अगर पार्टी यह अनुबंध निभाती है, तो वह सिर्फ सीटें नहीं, नैरेटिव भी जीत सकती है और बिहार की राजनीति में यही असली बढ़त होती है।

यह भी पढ़ें.. एलपीजी उपभोक्ताओं को जल्द मिलेगी बड़ी राहत, बदल सकेंगे गैस कंपनी

यह भी पढ़ें… बिहार को मिला सात नई ट्रेनों का तोहफ़ा

यह भी पढ़ें… बनकटा : तुलसी बालिका इंटरमीडिएट कॉलेज की 6ठवीं की छात्रा आंचल कुशवाहा बनीं एक दिन की प्रधानाचार्य

यह भी पढ़ें… 1st अक्टूबर से बदलेंगे कई नियम, जेब और रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ेगा असर

आगे की खबरों के लिए आप हमारी वेबसाइट पर बने रहें…

Advertisements
Cha Ch Cafe
Advertisements
Gulab Ashiyana
error: Content is protected !!