जब महिलाएं स्टीयरिंग थामेंगी तो बदलेगा समाज का चेहरा

- ड्राइविंग सिखाने की योजना सिर्फ वाहन चलाना नहीं सिखाएगी, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर और सुरक्षित बनाएगी
Khabari Chiraiya Desk : लखनऊ में महिलाओं के लिए ड्राइविंग प्रशिक्षण पर दी गई छूट सिर्फ एक प्रशासनिक घोषणा नहीं, यह रोज़मर्रा की आज़ादी की दिशा में बढ़ाया गया ठोस कदम है। सार्वजनिक परिवहन पर निर्भरता, असुरक्षा की आशंकाएं और पारिवारिक झिझक…इन तीन परतों को एक साथ संबोधित करने की क्षमता इस पहल में दिखाई देती है। 25 प्रतिशत फीस में राहत, पांच दिन का निःशुल्क सिमुलेटर अभ्यास और घर से पिक-एंड-ड्रॉप…ये तीन तत्व मिलकर उस शुरुआती बाधा को कम करते हैं जहां अधिकांश महिलाएं ड्राइविंग सीखने का निर्णय टाल देती हैं।
परिणामकारी नीतियां वहीं सफल होती हैं जहां इरादे के साथ अमल की ईमानदारी भी जुड़ी हो। मोटर वाहन निरीक्षक का यह निर्देश कि बिना पूर्ण प्रशिक्षण प्रमाणपत्र जारी न हो, मूलभूत है क्योंकि स्टीयरिंग पर बैठते ही जिम्मेदारी की शुरुआत होती है। ड्राइविंग सीखना केवल तकनीक नहीं; यह अनुशासन, सड़क सुरक्षा, सहयात्रियों के अधिकार और कानून की समझ का अभ्यास है। इसीलिए प्रशिक्षण का हर घंटे, हर मॉड्यूल मापनीय हो।सैद्धांतिक टेस्ट, रिफ्लेक्स ट्रेनिंग, नाइट-ड्राइविंग का सिमुलेशन, बेसिक मेंटेनेंस और आपातकालीन प्रतिक्रिया-ये सब पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनें।
इस पहल का सामाजिक आयाम और बड़ा है। नौकरी, पढ़ाई और घरेलू दायित्वों के बीच समय की कड़ी रस्सी पर चलने वाली महिलाएं जब अपनी यात्रा स्वयं नियंत्रित करती हैं तो उनके निर्णय-क्षेत्र का विस्तार होता है। यही आत्मविश्वास कार्यस्थल तक पहुंचता है और घर के भीतर स्थापित अदृश्य सीमाएं भी ढीली पड़ती हैं। परंतु इसी के साथ संरचनात्मक सुधार भी आवश्यक हैं-सुरक्षित प्रशिक्षण मार्ग, ट्रैफिक पुलिस की संवेदनशील उपस्थिति, और उन इलाकों में प्रशिक्षण स्लॉट जहां से महिलाओं का वास्तविक फुटफॉल आता है।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस योजना की प्रगति को पारदर्शी डैशबोर्ड पर रखे। कितनी महिलाओं ने नामांकन किया, कितनों ने पाठ्यक्रम पूरा किया, कितनों का लाइसेंस बना और छह-बारह महीने बाद दुर्घटना-दर में क्या बदलाव आया। डेटा ही नीति का आईना होता है। साथ ही, पंजीकृत मोटर स्कूलों की ऑडिटिंग, फीडबैक-हेल्पलाइन और शिकायत के समयबद्ध निस्तारण की व्यवस्था विश्वास बढ़ाएगी। महिला प्रशिक्षकों की संख्या बढ़ाना और बैच समय को महिलाओं की सुविधा के अनुरूप बनाना भी समान रूप से जरूरी है।
सबसे अहम, इसे अक्टूबर भर की रियायत तक सीमित न रखा जाए। जो परिवार आज छूट और सुरक्षा के भरोसे अपनी बेटियों को भेजेंगे, वे तभी प्रेरित रहेंगे जब शासन इस पहल को वार्षिक कार्यक्रम की स्थायी कड़ी बना दे। विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए अतिरिक्त सहायता और छात्रवृत्ति के साथ। ड्राइविंग सीखने का रास्ता अगर लागत-समर्थ और सुरक्षित बना, तो इसका असर रोजगार, स्वास्थ्य-आपात स्थिति में तत्काल गतिशीलता और समग्र शहरी गतिशीलता तक फैलेगा।
लखनऊ की शुरुआत दिशासूचक है। अब परीक्षा अमल की है-गुणवत्ता, सुरक्षा, जवाबदेही और स्थायित्व की। अगर शासन, मोटर स्कूल और समाज मिलकर इस अवसर को नीति में परिणत कर दें तो सशक्त सड़कें सिर्फ शहर की नहीं, महिलाओं की आकांक्षाओं की भी राह बनेंगी।
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