October 14, 2025

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इस बार धन्वंतरि जयंती और शनि प्रदोष का दुर्लभ संयोग बनेगा अत्यंत शुभ

  • शनिवार को प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी पर मनाया जाएगा धनतेरस का पर्व, बर्तन, आभूषण और वाहन की खरीद मानी जाएगी शुभ

Khabari Chiraiya Desk: इस वर्ष धनतेरस का पर्व 18 अक्टूबर, दिन शनिवार को पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। यह दिन धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस बार धनतेरस पर दुर्लभ संयोग बन रहा है-धन्वंतरि जयंती, शनि प्रदोष और स्थिर लग्न का एक साथ आगमन। इस शुभ अवसर पर माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर के साथ भगवान धन्वंतरि की पूजा का विशेष महत्त्व रहेगा।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, त्रयोदशी तिथि का आरंभ 18 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 20 मिनट पर होगा और इसका समापन 19 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 54 मिनट पर होगा। प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी होने के कारण इसी दिन धनतेरस मनाई जाएगी। परंपरा के अनुसार, इस तिथि में स्थिर लग्न अथवा प्रदोष काल में की गई पूजा और खरीदारी को वर्षभर के लिए शुभ और स्थायी फल देने वाला माना जाता है।

धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की आराधना करने के साथ सोना, चांदी, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, रत्न, आभूषण और बर्तन खरीदना अत्यंत शुभफलदायक माना जाता है। विशेषकर इस दिन धातु या मिट्टी का कलश खरीदना आवश्यक बताया गया है, क्योंकि यह ऐश्वर्य, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि कलश के साथ प्रकट हुए थे, उसी स्मृति में यह परंपरा आज तक चली आ रही है।

इस वर्ष धनतेरस के लिए शुभ स्थिर लग्नों के समय इस प्रकार रहेंगे-दोपहर 2 बजकर 21 मिनट से 3 बजकर 46 मिनट तक कुम्भ लग्न, शाम 6 बजकर 59 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक वृष लग्न, रात 1 बजकर 27 मिनट से 3 बजकर 40 मिनट तक सिंह लग्न और रविवार की सुबह 8 बजकर 10 मिनट से 10 बजकर 25 मिनट तक वृश्चिक लग्न रहेगा। इन चारों में किसी भी शुभ लग्न में की गई खरीदारी को अत्यंत मंगलकारी माना गया है।

धनतेरस के दिन शनि प्रदोष व्रत का संयोग भी विशेष फलदायी रहेगा। प्रदोष काल में व्रत रखकर भगवान शिव, माता पार्वती, माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की संयुक्त पूजा करने से उत्तम फल प्राप्त होते हैं। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा से व्रत और पूजन करने पर संतान संबंधी सभी समस्याओं का समाधान होता है और घर में सुख, समृद्धि तथा स्वास्थ्य का वास होता है।

ज्योतिष विद्वानों के अनुसार, इस वर्ष का धनतेरस पर्व कई दृष्टियों से विशिष्ट है। धन्वंतरि जयंती और शनि प्रदोष का मिलन अत्यंत दुर्लभ है। प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी का यह संयोग जहां धन और आरोग्य दोनों का वरदान देने वाला है, वहीं स्थिर लग्न में की गई पूजा और खरीदारी जीवन में स्थायित्व और प्रगति का प्रतीक मानी गई है। यही कारण है कि इस बार का धनतेरस पर्व श्रद्धा, परंपरा और आस्था के साथ-साथ शुभ ग्रह-योगों से भी परिपूर्ण रहेगा।

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