बिहार चुनाव: कांग्रेस और आरजेडी के बीच ‘दोस्ताना मुकाबले’ से बढ़ी बेचैनी

- महागठबंधन में सीटों की जंग थमी नहीं। सीमांचल और कोसी के कई इलाकों में दोनों दल आमने-सामने हैं
Khabari Chiraiya Desk: बिहार चुनाव में महागठबंधन की अंदरूनी खींचतान को सुलझाने के लिए कांग्रेस के पर्यवेक्षक और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पटना में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की। बैठक का उद्देश्य सीट बंटवारे को लेकर बने तनाव को खत्म करना था, लेकिन मुलाकात से कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका।
हालांकि गहलोत ने बातचीत के बाद मीडिया को बताया कि “लालू जी और तेजस्वी जी से अच्छी चर्चा हुई है, कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट रहेगी, लेकिन जल्द भ्रम दूर हो जाएगा।”
लेकिन, सूत्र बताते हैं कि आरजेडी नेतृत्व ने कांग्रेस को किसी नए समझौते का भरोसा नहीं दिया और गहलोत को बिना पुख्ता सहमति के लौटना पड़ा। अब सारी निगाहें गुरुवार को होने वाली साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस पर टिकी हैं, जहां गठबंधन की तस्वीर साफ होने की उम्मीद जताई जा रही है।
‘फ्रेंडली फाइट’ या असली जंग?
महागठबंधन के अंदर यह बहस अब गर्म हो गई है कि कुछ सीटों पर जो ‘दोस्ताना मुकाबला’ बताया जा रहा है, वह सच में दोस्ताना रहेगा या असली चुनावी जंग बन जाएगा।
गहलोत ने इस स्थिति को “लोकतांत्रिक जोश का हिस्सा” बताया, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी इस तर्क को कमजोर करती दिख रही है।
करीब 11 सीटों पर कांग्रेस और आरजेडी के उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। इनमें सीमांचल और कोसी क्षेत्र की कई सीटें शामिल हैं, जहां स्थानीय समीकरणों के कारण सीट एडजस्टमेंट पर सहमति नहीं बन पाई है।
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कांग्रेस ने एकता का संदेश दिया, पर असंतोष बरकरार
बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने बयान जारी कर कहा कि “पार्टी का लक्ष्य केवल सत्ता नहीं, बल्कि बिहार के लोगों का भविष्य है। महागठबंधन एनडीए के खिलाफ मजबूती से चुनाव लड़ेगा और जनता के मुद्दों को केंद्र में रखेगा।”
हालांकि, पार्टी के इस बयान के बावजूद अंदरखाने असंतोष की लहर साफ दिख रही है। कई जिलों में कार्यकर्ता टिकट वितरण को लेकर नाराज हैं और आरजेडी-कांग्रेस दोनों में मतभेद उभर आए हैं।
कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि आरजेडी ने सीटों के बंटवारे में वर्चस्व दिखाने की कोशिश की, जिससे साझेदारी की भावना कमजोर हुई है।
महागठबंधन की एकता पर प्रश्नचिह्न
महागठबंधन के नेता भले ही सार्वजनिक मंचों पर तालमेल की बात कर रहे हों, लेकिन जमीनी राजनीति में स्थिति उलट है। ‘फ्रेंडली फाइट’ की भाषा दरअसल भीतर की बेचैनी को छिपाने का माध्यम बन गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह स्थिति जारी रही तो महागठबंधन के वोट बैंक में अंतरविरोध और मत विभाजन की संभावना बढ़ जाएगी, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिल सकता है।
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