छठ महापर्व: खरना के साथ बढ़ा आस्था का प्रवाह, आज श्रद्धालु देंगी डूबते सूरज को अर्घ्य
- व्रतिनों ने शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी बनाकर छठी मईया को चढ़ाया और परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया।
Khabari Chiraiya Desk: लोकआस्था के महापर्व छठ का दूसरा दिन आज ‘खरना’ के रूप में मनाया गया। इस दिन छठ व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को शुद्धता व श्रद्धा के साथ प्रसाद तैयार करते हैं। मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर गुड़ और चावल की खीर पकाई जाती है। इसके साथ रोटी बनाई जाती है और मौसमी फलों में केले का विशेष स्थान होता है। केले के पत्ते पर रखकर प्रसाद छठी मईया को अर्पित किया जाता है।
व्रती इस दिन केवल एक बार ही भोजन करते हैं। खरना का शाब्दिक अर्थ है ‘शुद्धिकरण’। यह शुद्धिकरण केवल शरीर का नहीं, बल्कि मन और आत्मा का भी होता है। छठ व्रतियों का मानना है कि इस दिन व्रत रखकर वे अपने तन और मन को पवित्र करते हैं ताकि अगले चरण में सूर्य देव और छठी मईया की आराधना पूरी निष्ठा से कर सकें।
खरना की रात व्रती स्वयं प्रसाद ग्रहण करती हैं और फिर परिवार व आस-पड़ोस में बांटती हैं। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से घर में सुख, शांति और सौभाग्य का वास होता है।
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छठ महापर्व की लोकप्रियता अब सीमाओं से परे जा चुकी है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर देश के अन्य हिस्सों और विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों तक इस पर्व की आस्था झलकती है। छठ पूजा को सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है, जिसमें चार दिन तक कठोर नियमों का पालन होता है और व्रती 36 घंटे तक निर्जला रहकर आराधना करती हैं।
छठ पर्व चार दिनों तक चलता है-नहाय खाय, खरना, अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य। सोमवार यानी 27 अक्टूबर को तीसरे दिन महिला व्रती निर्जला रहकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी, जबकि 28 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगी।
मान्यता है कि जो व्यक्ति पूरी निष्ठा और श्रद्धा से छठ व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह व्रत सुहाग, संतान, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। कहा जाता है कि छठी मईया उन व्रतियों से विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं जो तन, मन और कर्म से शुद्ध होकर व्रत का पालन करते हैं।
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