बिहार : सिवान की खामोश रात में खाकी लहूलुहान, एएसआई की गला रेतकर हत्या
- पुलिस ने छापेमारी कर कुछ लोगों को हिरासत में लिया है, लेकिन थाने में तैनात एएसआई की निर्मम हत्या न सिर्फ कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न है, बल्कि व्यवस्था की विफलता का भी प्रतीक है
Khabari Chiraiya Desk: बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच सिवान जनपद से खाकी के लहूलुहान होने की बड़ी खबर है, जिसने सबको हिला कर रख दिया है। खबर है कि दारौंदा थाना क्षेत्र के सिरसांव नया टोला और सादपुर गांव के बीच बुधवार की रात एएसआई अनिरुद्ध कुमार की गला रेतकर हत्या कर दी गई। मधुबनी के रहने वाले 46 वर्षीय यह पुलिसकर्मी करीब डेढ़ साल से दारौंदा थाने में पदस्थापित थे। उनका शव अरहर के खेत में मिला, जो थाने से मुश्किल से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर था। यानी जिस इलाके में वे कानून का पहरा देते थे, वहीं अपराधियों ने कानून की रेखा मिटा दी।
घटना के बाद पूरा प्रशासन हरकत में आया। एसपी मनोज कुमार तिवारी, एसडीपीओ अमन और दो थानों की पुलिस मौके पर पहुंची, छापेमारी हुई, कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन औपचारिक कार्रवाइयों से जनता का भरोसा लौट आएगा? जिस प्रदेश में पुलिस खुद निशाने पर हो, वहां आम मतदाता कैसे सुरक्षित महसूस करेगा?
सिवान की यह वारदात कोई पहली नहीं है। चुनावी दौर में यह इलाका हमेशा संवेदनशील माना गया है। 1990 और 2000 के दशक में सिवान सत्ता, अपराध और सियासत के त्रिकोण का केंद्र रहा। अब जबकि राज्य लोकतंत्र की नई चौखट पर खड़ा है, इस तरह की घटनाएं फिर उसी अंधेरे को लौटा रही हैं। यह सिर्फ एक पुलिस अधिकारी की हत्या नहीं, बल्कि उस कानून व्यवस्था की हत्या है जिसके बल पर लोकतंत्र अपनी सांसें लेता है।
चुनाव आयोग हर बार “फ्री एंड फेयर पोल” की गारंटी देता है, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि अपराध का साया अब भी लोकतंत्र के उत्सव को भय में बदल देता है। जब खाकी खुद असुरक्षित है तो बैलेट बॉक्स की सुरक्षा किस भरोसे होगी? क्या यह घटना यह संकेत नहीं देती कि चुनावी सुरक्षा को सिर्फ तैनाती से नहीं, बल्कि व्यवस्था की रीढ़ मजबूत करने से ही संभव बनाया जा सकता है?
एएसआई अनिरुद्ध कुमार की हत्या पुलिस व्यवस्था के भीतर व्याप्त ढीलापन भी उजागर करती है। थाने से कुछ ही दूरी पर तैनात अधिकारी की गला रेतकर हत्या होना बताता है कि अपराधी अब पुलिस से नहीं डरते। सवाल यह भी है कि रात के उस पहर में एएसआई अकेले क्यों थे? क्या उन्हें किसी ने बुलाया था? क्या यह सुनियोजित साजिश थी? इन सवालों का जवाब सिर्फ एफआईआर के पन्नों में नहीं, बल्कि सरकार की जवाबदेही में छिपा है।
बिहार चुनावों की इस संवेदनशील घड़ी में सिवान की यह घटना हर राजनेता को आईना दिखा रही है। चुनाव आयोग और राज्य सरकार दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस हत्या को चुनावी आंकड़ों में गुम न होने दिया जाए।
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