माता वैष्णो देवी यात्रा में ठंड और धुंध भी नहीं रोक पा रही आस्था का प्रवाह
- त्रिकुटा पर्वत की पगडंडियों पर धुंध की सफेद चादर बिछी है, ठंडी हवाएं शरीर को सिहराती हैं
Khabari Chiraiya Desk : नवंबर की ठंड ने जैसे ही पहाड़ों को घेरा, त्रिकुटा पर्वत के रास्तों पर धुंध की चादर फैल गई। दिन में धूप टुकड़ों में झांकती है और रातों में तापमान एक अंकों में उतर जाता है। फिर भी, कटरा की सड़कों पर श्रद्धालुओं की भीड़ बरकरार है। देश के कोने-कोने से आए भक्त माता के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंच रहे हैं-सर्द हवाओं को चीरते हुए, धुंध में खोती पगडंडियों पर चलते हुए।
जम्मू से कटरा पहुंचते ही भक्तों को ठंड का स्वागत मिलता है। रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से ‘जय माता दी’ के जयकारों के बीच यात्रा की शुरुआत होती है। इस समय सुबह के धुंधलके में दिखते रेलिंग-युक्त रास्ते और पहाड़ों पर लगी लाइटें इस यात्रा का रोमांच कई गुना बढ़ा देती हैं। लगभग 13 किलोमीटर लंबा यह मार्ग समुद्र तल से 5200 फुट की ऊंचाई तक ले जाता है।
अर्धकुंवारी पहुंचते-पहुंचते सांस फूलती है, लेकिन रास्ते में मौजूद चाय की दुकानों से उठती भाप और गर्म-गर्म काढ़ा श्रद्धालुओं को नई ऊर्जा देता है। यहां से आगे जाते ही एक ओर से चरण गंगा झरने की आवाज सुनाई देती है। श्रद्धालु यहां रुककर ठंडे पर पवित्र जल से हाथ-मुंह धोते हैं। ठंड के बावजूद श्रद्धा का यह भाव अडिग रहता है।
भवन तक पहुंचने का रास्ता अब पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित और सुविधाजनक है। हर मोड़ पर सुरक्षा जवान तैनात हैं, आधुनिक प्रकाश व्यवस्था है और थर्मल ब्लैंकेट की सुविधा भी उपलब्ध है। रात में चलने वालों के लिए रास्ते पर लगे हीटर यात्रियों को राहत देते हैं। कई जगह चिकित्सकीय टीम और स्वयंसेवक भी तैनात हैं।
कटरा से भवन तक हेलिकॉप्टर सेवा अब केवल सुविधा ही नहीं, बुजुर्ग और कमजोर यात्रियों के लिए नई उम्मीद बन चुकी है। इसके अलावा, पालकी, पोनी और इलेक्ट्रिक वाहनों की मदद से हर उम्र का यात्री माता तक पहुंच पा रहा है। रास्ते में भजन और जागरण के स्वर गूंजते रहते हैं। कुछ भक्त गर्म कपड़ों में लिपटे आगे बढ़ते हैं तो कुछ स्नीकर और जैकेट पहने, हाथों में चलने की लकड़ी लेकर चढ़ाई करते हैं—हर कोई अपने ढंग से, पर एक ही नीयत के साथ।
भवन पहुंचकर जब गुफा से निकलते हुए तीन पिंडियों के दर्शन होते हैं-महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में…वही क्षण इस यात्रा का चरम होता है। ठंड की सिहरन के बीच श्रद्धालुओं की आंखें नम पड़ जाती हैं, मन में एक अजीब-सी शांति उतर आती है। जैसे माता स्वयं साक्षात सामने खड़ी हों और आशीर्वाद दे रही हों।
इस समय कटरा से लेकर भवन तक का पूरा इलाका भक्ति और अनुशासन से भरा लगता है। रास्ते में धार्मिक गीत, जगह-जगह बने लंगर, गरमा-गरम प्रसाद और हर तरफ एक संगठित व्यवस्था…यह यात्रा को केवल आध्यात्मिक नहीं, सामाजिक पर्व भी बना देती है।
यात्रियों की मानें तो नवंबर की ठंड और धुंध, माता के आशीर्वाद और मन की शक्ति के सामने फीकी हो जाती है। भिक्षु से लेकर बॉर्डर वाले जवान तक, छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग दादी तक हर कोई इस यात्रा में एक समान भाव से शामिल नजर आता है। शायद यही वजह है कि सर्दी और धुंध के बीच भी माता वैष्णो देवी का दरबार साल भर जीवंत रहता है।
अंततः, यह यात्रा केवल पहाड़ों की चढ़ाई नहीं, मन की अडिगता और विश्वास की परीक्षा है। ठंड, धुंध और कठिन राहों पर चलते हुए हर यात्री सीखता है-आस्था और प्रेम की राह में कोई बाधा नहीं टिकती, बस मन में विश्वास होना चाहिए और माता की कृपा सब आसान कर देती है।
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