December 21, 2025

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चक्रवाती खतरे से घिरा दक्षिण भारत, मलक्का जलडमरूमध्य के ऊपर सक्रिय गहरे दबाव

  • तटीय राज्यों में बारिश और तेज हवाओं का दौर तेज होने की आशंका है

Khabari Chiraiya Desk:

दक्षिणी हवाओं में अचानक बदलाव और समुद्र के ऊपर बढ़ता वायुमंडलीय दबाव आने वाले दिनों में दक्षिण भारत के लिए चुनौती खड़ी कर सकता है। मलक्का जलडमरूमध्य के ऊपर बना गहरा दबाव तेजी से संगठित हो रहा है और मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह 26 नवंबर यानी बुधवार को चक्रवाती तूफान का रूप ले सकता है। चक्रवात बनने पर इसे ‘सेन्यार’ नाम दिया जाएगा, जिसका नामकरण संयुक्त अरब अमीरात ने किया है।

आईएमडी के अनुसार, जैसे ही यह प्रणाली समुद्री ऊर्जा को और अधिक अवशोषित करेगी, हवा की गति 60 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच सकती है। इसका रुख पश्चिम–उत्तर–पश्चिम दिशा में बना हुआ है और शुरुआती अनुमान बताते हैं कि 29 या 30 नवंबर के आसपास यह तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों को प्रभावित कर सकता है।

समुद्र में उभर रहे इस संभावित चक्रवात का असर जमीन पर भी दिखने लगा है। 26 और 27 नवंबर को दक्षिण भारत के कई हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश के साथ भारी वर्षा का खतरा रहेगा। कई जिलों में गरज, चमक और तेज हवा का दौर भी देखने को मिल सकता है। मौसम विभाग का कहना है कि 28 से 29 नवंबर के बीच बारिश में कुछ कमी आएगी, लेकिन खतरा पूरी तरह टलने की अभी उम्मीद नहीं है।

इसी बीच बंगाल की खाड़ी के दक्षिण–पश्चिम हिस्से में एक और निम्न दबाव क्षेत्र बन रहा है, जो अगले दिनों में वर्षा गतिविधियों को और बढ़ा सकता है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और पुडुचेरी में इसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है।

तटीय जिलों में प्रशासन सतर्क है। चेन्नई, तंजावुर, मयिलादुथुराई सहित तमिलनाडु के कई क्षेत्रों में स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। दिनभर की भारी बारिश और सड़कों पर जलभराव से सोमवार को आमजन का जीवन अस्तव्यस्त रहा, जिसके बाद जिला अधिकारियों ने आज भी शैक्षणिक संस्थानों को बंद रखने का निर्णय लिया है। पुडुचेरी में भी यही स्थिति है, जहां सुरक्षा को देखते हुए छुट्टी की संभावना बनी हुई है।

मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि चक्रवात ‘सेन्यार’ की वास्तविक दिशा और लैंडफॉल को लेकर स्थिति अगले 48 घंटों में स्पष्ट होगी। फिलहाल तटीय राज्यों को उच्च सावधानी और तैयारियों की आवश्यकता है, क्योंकि समुद्र में बन रही यह प्रणाली तीव्र होने की क्षमता रखती है और बारिश से लेकर हवा तक, हर प्रकार की मौसम गतिविधि को प्रभावित कर सकती है।

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