उज्ज्वला की सब्सिडी 379 से घटकर 79 हुई, गरीब महिलाओं की रसोई पर सीधा वार
- बदलाव ने गरीब परिवारों की रसोई पर अप्रत्याशित आर्थिक बोझ बढ़ा दिया है
Khabari Chiraiya Bihar Desk: उज्ज्वला योजना को ग्रामीण भारत की महिलाओं की जिंदगी बदल देने वाली योजना माना गया था। यह वह क्रांतिकारी पहल थी जिसने वर्षों से धुएं में खाना पकाने को मजबूर महिलाओं को स्वच्छ ईंधन दिया। लेकिन हाल में सरकार की सब्सिडी नीति में हुए बड़े बदलाव ने इस योजना के असर और भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएं खड़ी कर दी हैं।
सबसे बड़ा बदलाव सब्सिडी राशि में आया है। पहले उज्ज्वला उपभोक्ताओं के खाते में 379 रुपये तक की सब्सिडी जाती थी। यह राशि गैस सिलिंडर की कुल कीमत को काफी हद तक कम कर देती थी, जिससे गरीब महिलाएँ बिना हिचक सिलिंडर भरवाती थीं। लेकिन अब उज्ज्वला उपभोक्ताओं को भी सिर्फ 79 रुपये की ही सब्सिडी दी जा रही है-ठीक वैसी ही जैसी साधारण ग्राहकों को मिलती है।
इस बदलाव ने गरीब महिलाओं के बजट की कमर तोड़ दी है। जब एक सिलिंडर की कीमत 1000 रुपये के आसपास पहुंच रही हो, तब 79 रुपये की सब्सिडी किसी राहत की तरह नहीं, बल्कि औपचारिकता जैसी लगती है। BPL परिवारों के लिए यह भारी आर्थिक दबाव है, क्योंकि उनकी मासिक आय ही अनिश्चित होती है।
इसका असर जमीन पर साफ दिखने लगा है। कई परिवार फिर से लकड़ी, कोयले और कंडे की ओर लौट रहे हैं। उज्ज्वला का मकसद था महिलाओं को धुएं से मुक्त करना और बच्चों को सुरक्षित रखना, लेकिन महंगी गैस ने इस उद्देश्य को कमजोर कर दिया है।
सब्सिडी में कटौती के साथ एक और बड़ा असर यह भी पड़ा है कि सिलिंडर को अब “ज़रूरत पर आधारित ईंधन” की तरह उपयोग किया जाने लगा है। गरीब परिवार गैस को सिर्फ चाय या किसी जरूरी काम के लिए बचाकर रखते हैं, जबकि रोजमर्रा के भोजन के लिए फिर पारंपरिक ईंधन का उपयोग बढ़ रहा है। इससे महिलाओं के फेफड़ों पर, वातावरण पर और बच्चों के स्वास्थ्य पर फिर वही पुराने खतरे मंडराने लगे हैं।
उज्ज्वला योजना में शुरुआत में मुफ्त स्टोव, मुफ्त कनेक्शन और पहली रिफिल जैसी सुविधाएं दी जाती थीं। लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। कनेक्शन तो उपलब्ध है, पर गैस भरवाने की क्षमता लगातार घट रही है। गरीब परिवारों को सिर्फ कागज पर उज्ज्वला का लाभ नहीं चाहिए, उन्हें उसकी उपयोगिता भी चाहिए, वह तभी संभव है जब सब्सिडी में व्यवहारिक सुधार हो।
सरकार को यह समझना होगा कि उज्ज्वला योजना केवल कनेक्शन देने का कार्यक्रम नहीं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य और सम्मान से जुड़ी सामाजिक नीति है। यदि सब्सिडी इतनी सीमित कर दी जाएगी कि उसे कोई वास्तविक राहत ही न मिले तो यह योजना अपने उद्देश्य से भटक जाएगी।
379 रुपये की सब्सिडी से 79 रुपये पर आना सिर्फ एक वित्तीय बदलाव नहीं-यह गरीब महिलाओं की रसोई पर सीधा आघात है। सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि उज्ज्वला की जलाई गई स्वच्छ रसोई की लौ बुझने न पाए।
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