वृंदावन: बुद्धिमत्ता की असली पहचान और जीवन को दिशा देने वाले गुण
- वृंदावन में आचार्य शत्रुघ्न ठाकुर जी महाराज ने बताया कि बुद्धिमत्ता केवल ज्ञान नहीं, बल्कि आचरण और दृष्टि का संतुलन है।
Khabari Chiraiya Desk : उत्तर प्रदेश के धार्मिक नगरी वृंदावन में रहने वाले आचार्य शत्रुघ्न ठाकुर जी महाराज से विशेष वार्ता के दौरान जब बुद्धिमान पुरुष के गुणों को लेकर प्रश्न किया गया तो उन्होंने इसे जीवन से जुड़ा एक व्यापक और गहन विषय बताया। बातचीत की शुरुआत में ही महाराज जी ने स्पष्ट किया कि बुद्धिमत्ता केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति के विचार, व्यवहार और निर्णयों में झलकती है। उनके अनुसार आज के समय में बुद्धिमत्ता की सही परिभाषा समझना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
आचार्य शत्रुघ्न ठाकुर जी महाराज ने बताया कि बुद्धिमान पुरुष का पहला और सबसे बड़ा गुण विवेक होता है। विवेक के माध्यम से ही व्यक्ति सही और गलत के बीच अंतर कर पाता है। विवेकशील व्यक्ति भावनाओं में बहकर निर्णय नहीं लेता, बल्कि परिस्थितियों को समझकर संतुलित और दूरदर्शी फैसला करता है। यही विवेक उसे समाज और परिवार में सम्मान दिलाता है।
महाराज जी ने धैर्य को बुद्धिमत्ता की मजबूत नींव बताया। उनके अनुसार कठिन परिस्थितियों में शांत रहना हर किसी के बस की बात नहीं होती। जो व्यक्ति विपरीत हालात में भी धैर्य बनाए रखता है, वही वास्तव में बुद्धिमान कहलाता है। धैर्य व्यक्ति को जल्दबाजी में गलत कदम उठाने से बचाता है और समय के साथ सही समाधान तक पहुंचाता है।
वार्ता के दौरान आत्म-नियंत्रण पर भी विशेष जोर दिया गया। आचार्य शत्रुघ्न ठाकुर जी महाराज ने कहा कि जो व्यक्ति अपने विचारों, इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखता है, वही जीवन में स्थिरता और शांति प्राप्त करता है। आत्म-नियंत्रण के अभाव में ज्ञान भी दिशाहीन हो जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि बुद्धिमान पुरुष कभी यह नहीं मानता कि वह सब कुछ जान चुका है। निरंतर सीखने की भावना उसे आगे बढ़ाती है। जीवन के हर अनुभव से कुछ न कुछ सीखने वाला व्यक्ति ही समय के साथ अधिक परिपक्व और समझदार बनता है। सीखने की यह ललक व्यक्ति को अहंकार से भी दूर रखती है।
महाराज जी के अनुसार सकारात्मक दृष्टिकोण बुद्धिमत्ता का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। जीवन में समस्याएं सभी के सामने आती हैं, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति समस्याओं को अवसर के रूप में देखता है। सकारात्मक सोच उसे टूटने नहीं देती, बल्कि चुनौतियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है।
सहानुभूति और संवेदनशीलता को लेकर आचार्य शत्रुघ्न ठाकुर जी महाराज ने कहा कि बुद्धिमान पुरुष केवल अपने बारे में नहीं सोचता, बल्कि दूसरों की भावनाओं को भी समझता है। वह किसी के दुख को देखकर उदासीन नहीं रहता, बल्कि संवेदना के साथ सहयोग का भाव रखता है। यही गुण उसे समाज में स्वीकार्य बनाता है।
नैतिकता को उन्होंने बुद्धिमत्ता का आधार स्तंभ बताया। ईमानदारी, निष्ठा और सत्य के मार्ग पर चलना बुद्धिमान पुरुष की पहचान होती है। नैतिक मूल्यों से समझौता करके मिली सफलता को उन्होंने खोखली बताया और कहा कि ऐसी सफलता स्थायी नहीं होती।
निर्णय लेने की क्षमता पर बोलते हुए महाराज जी ने कहा कि सही समय पर लिया गया निर्णय जीवन की दिशा बदल सकता है। बुद्धिमान पुरुष परिस्थितियों का मूल्यांकन कर समय पर निर्णय लेता है और परिणाम की जिम्मेदारी भी स्वीकार करता है।
आचार्य शत्रुघ्न ठाकुर जी महाराज ने आत्म-विश्लेषण और नम्रता को भी अत्यंत आवश्यक गुण बताया। उनके अनुसार जो व्यक्ति स्वयं की गलतियों को स्वीकार कर सुधार करता है और अपनी उपलब्धियों का दिखावा नहीं करता, वही सच्चे अर्थों में बुद्धिमान होता है। ऐसी नम्रता व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाती है और समाज में उसकी प्रतिष्ठा को बढ़ाती है।
इस विशेष वार्ता में महाराज जी के विचार यह संदेश देते हैं कि बुद्धिमत्ता कोई जन्मजात गुण नहीं, बल्कि अभ्यास और आत्मचिंतन से विकसित होने वाली जीवन शैली है, जिसे अपनाकर व्यक्ति न केवल स्वयं का जीवन बेहतर बना सकता है, बल्कि समाज को भी सकारात्मक दिशा दे सकता है।
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