हर सवाल का जवाब नेहरू क्यों💥
- संसद में हर विवाद की जड़ में पहले प्रधानमंत्री को खड़ा करने की कोशिश। वंदे मातरम् से लेकर वोट चोरी तक, दोषारोपण का दायरा बढ़ता गया
Khabari Chiraiya Desk: इस देश के संकटों और समस्याओं के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया जाना अब एक गंभीर शोध का विषय बनता जा रहा है। संसद के वर्तमान सत्र में दो मुद्दों को लेकर लगातार बहस हो रही है। पहला वंदे मातरम् से जुड़ा विवाद और दूसरा कथित फूड चोरी से आगे बढ़कर वोट चोरी तक पहुंच चुका विमर्श। केंद्र सरकार और उसके नेताओं के अनुसार इन दोनों ही मामलों की जड़ में जवाहरलाल नेहरू को खड़ा किया जा रहा है।
भूत को अभूतपूर्व बनाने की जो राजनीतिक कलाबाजी वर्तमान सरकार में देखने को मिल रही है, उसकी कल्पना शायद पहले नहीं की जा सकती थी। बाबरी मस्जिद का मामला हो या उससे जुड़े अनगिनत ऐतिहासिक प्रसंग, गड़े मुर्दों को उखाड़ने की यह प्रक्रिया अंतहीन प्रतीत होती है। मौजूदा सत्ता की दृष्टि में विषय चाहे जो भी हो, दोषी अंततः कांग्रेस ही है। वर्तमान सरकार के लिए स्वयं को पाक साफ साबित करने का सबसे कारगर हथियार यही बन चुका है। यह सरकार शायद बहुत कुछ न जानती हो, लेकिन यह जरूर जानती है कि एक रेखा के सामने उससे बड़ी रेखा कैसे खींची जाती है। इसे अगर राजनीतिक कलाबाजी कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
राष्ट्रीयता के सवाल पर यह पहली ऐसी सरकार है जो स्वतंत्रता संग्राम, आजादी और शहादत के इतिहास में खुद को सबसे आगे खड़ा करने की कोशिश कर रही है। यह अलग बात है कि वास्तविकता और ऐतिहासिक तथ्य इससे मेल नहीं खाते। वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर संसद में चल रही चर्चा में सत्ता पक्ष की बात तो समाचार माध्यमों और अखबारों के जरिये जनता तक व्यापक रूप से पहुंच रही है, लेकिन विपक्ष के विचार बेहद सीमित और संक्षिप्त रूप में सामने आ रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस ने वंदे मातरम् से मुस्लिम समुदाय से जुड़े अंश को अलग कर दिया, क्योंकि वह अंश कथित रूप से हिंदू भावनाओं को आहत करता था। भाजपा का दावा है कि यह मुस्लिम तुष्टिकरण का परिणाम था और यही कांग्रेस का सबसे बड़ा अपराध है। इसी तर्क को राष्ट्रभक्ति के प्रमाण के रूप में पेश करने का प्रयास वर्तमान सरकार कर रही है।
लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू महासभा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कितने स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने वंदे मातरम् का नारा लगाते हुए फांसी का फंदा चूमा, कुर्बानी दी या शहीद हुए। इसके विपरीत, संसद में जनता दल यूनाइटेड ने जिस तरह मुजफ्फरपुर में वंदे मातरम् के जयघोष के साथ फांसी पर झूलने वाले शहीद खुदीराम बोस का उल्लेख किया, उसने साफ कर दिया कि जदयू का नजरिया हिंदू-मुस्लिम या भारत-पाकिस्तान जैसे विभाजनकारी मुद्दों से अलग है। यह पार्टी आज भी धर्मनिरपेक्षता के अपने मूल सिद्धांत पर कायम है।
सच यह है कि देश की अखंडता और एकता को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दृष्टिकोण भारतीय जनता पार्टी से भिन्न है। यह कहना भी सही नहीं होगा कि जनसंघ या हिंदू महासभा से जुड़े सभी नेता राष्ट्रवादी नहीं थे या उनका स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं था। लेकिन यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस या अन्य दलों से जुड़े स्वतंत्रता सेनानी देशभक्त या राष्ट्रभक्त नहीं थे। इतिहास, स्मृतियां और तथ्य आज भी जनता के सामने मौजूद हैं। भविष्य में नया इतिहास लेखन देश को किस दिशा में ले जाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।
जहां तक दूसरे मुद्दे यानी वोट चोरी और एसआईआर का सवाल है, अगर इसका जवाब भी कांग्रेस और जवाहरलाल नेहरू को ठहराया जा रहा है, और यह कहा जा रहा है कि पहले चुनाव से लेकर कांग्रेस शासनकाल तक मतदान में गड़बड़ियां होती रहीं, तो फिर तर्क की सीमा कहां समाप्त होती है। अगर बूथ लूट को वोट चोरी का पर्याय बना दिया जाए, तो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं।
इस देश में कांग्रेस के अलावा भी कई गैर-कांग्रेसी सरकारें रहीं। मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकारों के दौर में भी चुनाव हुए, लेकिन तर्क का स्तर कभी इतना नहीं गिरा। आज जो स्थिति बन रही है, वह न सिर्फ इतिहास को एकांगी नजरिये से देखने का प्रयास है, बल्कि लोकतांत्रिक विमर्श को भी कमजोर करती है।
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