यूपी में चढ़ा सियासी पारा : पाला बदल सकते हैं सुभासपा प्रमुख, गृहमंत्री शाह से मुलाकात के बाद योगी-2.0 सरकार में शामिल होने की चर्चा तेज
- सुभासपा प्रमुख ओप्रकाश राजभर ने एक चैनल पर कहा-अमित शाह के साथ उनकी मुलाकात की खबर झूठी है
होली के रंग के साथ ही यूपी में सियासी पारा चढ़ गया है, कहते हैं कि रातनीति में सब कुछ जायज है, नाजायज कुछ भी नहीं है। यूपी विधानसभा चुनाव-2022 में सपा के पाले में बैठकर सपा की सरकार बनाने का दावा करने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) प्रमुख ओप्रकाश राजभर की फिर पाला बदलकर भाजपा के पाले में जा सकते हैं। दिल्ली में शुक्रवार को राजभर की गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की खबर के बाद राजनीतिक गलियारे में चर्चाओं के बाद सियासी पारा चढ़ गया है। हालांकि सुभासपा ओपी राजभर इस मुलाकात को गलत बता रहे हैं। एक चैनल पर उन्होंने कहा कि मैं सपा के साथ हूं और सपा के साथ मिलकर 2024 का लोकसभा लड़ूंगा। अमित शाह के साथ उनकी मुलाकात की खबर झूठी है।
उधर, सूत्रों से यह खबर आ रही है कि चुनाव से पहले ललका साड़ का जुमला लिए घू रहे सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर शुक्रवार को दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मिले। बताया जा रहा है कि इस दौरान केंद्रीय मंत्री और यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल भी वहां मौजूद थे। यह मुलाकात करीब एक घंटे तक चली और तमाम मुद्दे और देश की सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश की राजनीतिक और जातीय समीकरण पर बातचीत हुई। यह माना जा रहा है कि लोकसभा की 14 सीटें पर राजभर समाज की निर्णायक भूमिका है। इस मुलाकात के बाद योगी-2.0 सरकार में राजभर के शामिल होने की चर्चा तेज हो गई है।
सूत्रों की मानें तो इस मुलाकात में ओपी राजभर ने गृहमंत्री अमित शाह के सामने अपनी मांग के साथ अपना पक्ष भी रखा है। अब फैसला गृहमंत्री और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को करना है। यह माना जा रहा है कि भाजपा और राजभर दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है, क्योंकि पूर्वांचल में लगभग 26 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां राजभर समाज का खासा प्रभाव है। 14 लोकसभा सीटों पर राजभर समाज निर्णायक भूमिका निभाता है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा के लिए यह अहम हो सकता है। राजभर ने 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन राजभर का मन बीच में बदल गया और भाजपा से बगावत का बिगुल बजाते हुए अलग हो गए थे। राजभर ने 2022 का विधानसभा का चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा और 6 सीटों पर जीत दर्ज की है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो बदलते राजनीतिक दौर में राजभर समाज पूर्वांचल के कई जिलों में राजनीतिक समीकरण को बनाने और बिगाड़ने की कूबत रखता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में जहां एक तरफ भाजपा पश्चिम यूपी से लेकर अवध तक मजबूत रही, तो वहीं दूसरी तरफ पूर्वांचल के चार जिलों में भाजपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई। गाजीपुर, अम्बेडकरनगर, मऊ, बलिया, जौनपुर, आजमगढ़ में भाजपा को भारी नुकसान हुआ। इसलिए भाजपा अभी से लोकसभा चुनाव को लेकर जुट गई है। भाजपा भी चाहेगी कि ओपी राजभर उनके साथ आ जाएं। यूपी में राजभर समाज की आबादी लगभग 3 फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है। गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में राजभर समाज की अच्छी खासी आबादी है। राजभर समाज का सूबे की लगभग चार दर्जन विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखता है और इसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव में दिखा है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पिछले चुनावों में राजभर को मिलने वाले वोटों की ताकत देखकर राजभर को साथ लेने का कूटनीतिक फैसला ले सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
ऐसे जानें राजनैतिक फलक पर कैसे उभरी सुभासपा
- 2009 के आम चुनाव में सुभासपा ने अकेले अपने दम पर अच्छे वोट हासिल किया था। सुभासपा को 2009 के लोकसभा चुनाव में चंदौली में 1.03 लाख वोट मिला, बलिया में 75 हजार वोट मिला, सलेमपुर में 65 हजार वोट मिला, घोसी में 75 हजार वोट मिला, वाराणसी में 40 हजार वोट मिला और बस्ती में लगभग 45 हजार वोट मिला था।
- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 2014 में मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल और दो-तीन अन्य छोटे दलों के साथ समझौता किया था। सुभासपा गठबंधन के प्रत्याशियों को 19 लोकसभा सीटों पर 25 हजार से 1.5 लाख के बीच वोट मिला था।
- जुलाई 2016 में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के शाह अमित शाह ने मऊ के रेलवे मैदान में राजभर के साथ रैली कर साथ लेने का ऐलान करते हुए पूर्वांचल में बड़ा दाव खेला था और इसका असर भी हुआ। सुभासपा के चार विधायक जीते थे।
- लंबे संघर्ष के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर को भाजपा जैसी बड़ी पार्टी से समझौता करने का मौका मिला था।
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