April 20, 2025

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अखिलेश के ओवर कांफिडेंस से पंक्चर हुई साइकिल, सपा के अजेय दुर्ग में खिला कमल, मुस्लिम और पिछड़ों को साधने के लिए करनी होगी मशक्कत

स्वतंत्र पत्रकार, बलिराम सिंह की कलम से…

महज तीन महीने पहले आजमगढ़ की सभी 10 सीटों पर विजय पताका फहराने वाली समाजवादी पार्टी को रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में दोनों सीटों से हाथ धोना पड़ा। सपा के अजेय दुर्ग में कमल खिल गया है। मजे की बात यह है कि आजमगढ़ से खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव के अनुज पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे थे, तो दूसरी ओर उपचुनाव से कुछ दिन पहले आजम खान जेल से बाहर आ गए एवं उनके करीबी को रामपुर से टिकट दिया गया। बावजदू इसके दोनों सीटों पर साइकिल नहीं दौड़ सकी।

यह दीगर बात है कि सपा प्रमुख ने हार स्वीकार करने की बजाय योगी सरकार पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया है, लेकिन यदि आजमगढ़ की जंग को लेकर राजनीतिक पंडितों की मानें तो यहां कई मोर्चे थे, जहां सपा अपने मतदाताओं को लुभाने में असफल साबित हुई। खुद समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने हार के लिए सपा प्रमुख पर ठिकरा फोड़ते हुए कहा है कि अखिलेश यादव एसी से बाहर नहीं निकल सके।

आजमगढ़ में मुस्लिम और यादव बिरादरी के अलावा नॉन यादव ओबीसी और अनुसूचित वर्ग की काफी संख्या है, लेकिन इन मतदाताओं को साधने में समाजवादी पार्टी असफल रही। मुसलमानों से जुड़े अनेक मुद्दे होने के बावजूद समाजवादी पार्टी न तो मुस्लिम मतदाताओं की शंका को दूर कर सकी और न ही पिछड़ों को ही साध सकी। इसकी वजह से खुद सपा के कई नेताओं और विधायकों ने सपा प्रमुख के खिलाफ आवाज उठाई। मुस्लिम नेताओं को अखर रहा है कि सपा प्रमुख अपने पिता की तरह खुलकर अथवा आक्रामक होकर उनके पक्ष में खड़े नहीं दिख रहे हैं। इसकी वजह से प्रदेश के मुसलमानों में एक निराशा का भाव है और उनका एक तबका तेजी से ओवैसी की ओर रूझान कर रहा है। विधानसभा चुनाव-2022 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने सपा को नुकसान पहुंचाया।

पिछड़ों के मुद्दे पर भी अखिलेश यादव खुलकर नहीं बोलते हैं। हालांकि उनके सिपहसलार तो पिछड़ों के मुद्दों को उठाते हैं, लेकिन दौर बदल चुका है। पिछड़ा वर्ग काफी जागरूक हो गया है। उन्हें अपना दल (सोनेलाल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल की तरह अखिलेश यादव से पिछड़ों के मुद्दों पर मुखर होकर बोलने की अपेक्षा है। लेकिन अपने संसदीय कार्यकाल में लोकसभा में पिछड़ा वर्ग के मामले में अखिलेश यादव शायद ही कभी खुलकर बोले हों।

हालांकि पिछले महीने हुए विधान परिषद चुनाव में अखिलेश यादव ने अपने हिस्से की चार सीटों में से दो मुस्लिम, एक यादव और एक नॉन यादव के तौर पर पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को विधान परिषद भेजने का कार्य किया है। इसके अलावा सपा प्रमुख ने राज्यसभा चुनाव के दौरान अपने हिस्से से सहयोगी दल रालोद के मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा में भेजा है। बावजूद सपा इस संदेश को जमीन पर पहुंचाने में असफल साबित हुई। सपा प्रमुख विधानसभा में खुद नेता प्रतिपक्ष बन गए और विधान परिषद में आजमगढ़ निवासी एमएलसी लाल बहादुर यादव को नेता विपक्ष बनाया। सपा के इस फैसले का पिछड़ा वर्ग के अन्य बिरादरी में निगेटिव मैसेज गया है। इसके अलावा विधान परिषद चुनाव में सहयोगी पार्टी सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के बेटे को टिकट न देने से नकारात्मक संदेश गया। पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

उपचुनाव के ऐन मौके पर चर्चा यह भी रही कि अखिलेश यादव आजमगढ़ में नया प्रयोग करना चाह रहे थे। यहां से वह आरक्षित वर्ग से आने वाले एक सम्मानित परिवार के युवा चेहरा सुशील आनंद को चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन जनपद के पार्टी के बड़े नेताओं ने विरोध किया था। जिसकी वजह से उन्हें धर्मेंद्र यादव को चुनाव लड़ाना पड़ा। लेकिन इस फैसले से आरक्षित वर्ग के मतदाताओं में थोड़ी नाराजगी हुई। बसपा प्रत्याशी गुड्‌डू जमाली को मिले वोटों से स्पष्ट है कि आज भी अनुसूचित जाति वर्ग का बड़ा हिस्सा बसपा के साथ जुड़ा है और उसमें सेंध लगाना आसान नहीं है।

रामपुर और आजमगढ़ चुनाव को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए चुनावी तैयारियों पर लगातार नजर रखे रहे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अलावा उन्होंने दोनों लोकसभा सीटों पर खुद जाकर प्रचार किया। दूसरी ओर, सपा प्रमुख आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव को हल्के में लेकर चल रहे थे। उनके सलाहकारों ने सुझाव दिया था कि बगैर उनके चुनाव प्रचार किए ही दोनों सीटों पर फतह हासिल होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

भाजपा के लिए भोजपुरी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को उम्मीदवार घोषित करना भी फायदेमंद रहा। भोजपुरीपट्‌टी के युवाओं में उनकी लोकप्रियता कायम है। आजमगढ़ के युवाओं एवं उनके स्वजातीय मतदाताओं ने भी उन्हें वोट दिया। उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि दिनेश लाल यादव उनके बीच का ही उम्मीदवार है।

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