1857 की क्रांति के जननायक के बलिदान पर हम सभी जनजातीय लोगों को फक्र है : राजू गोंड
भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने 1857 की क्रांति के जननायक राजा शंकर शाह और कुंअर रघुनाथ शाह को किया नमन
देवरिया (यूपी)। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने औराचौरी स्थित पार्टी कार्यालय पर 1857 की क्रांति के जननायक राजा शंकर शाह और कुंअर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर उनके चित्र पर पुष्पांजलि कर उन्हें नमन किया। इस अवसर पर भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के जिलाध्यक्ष राजू गोंड ने कहा कि आदिवासी वर्ग से आने वाले राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह महाकौशल अंचल में 1857 की क्रांति के सबसे बड़े जननायक थे। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया था। इनके बलिदान पर हम सभी जनजातीय लोगों को फक्र है।
इस दौरान जयप्रकाश शाह, अम्बिकेश पाण्डेय, अनिल कुमार गोंड, उमाशंकर गोंड, नवीन प्रकाश, गोविन्द गोंड, विकास गोंड, वचनदेव गोंड, संतोष चौहान, बसन्त गोंड, विजय गोंड, शिवजी शाह, हरिन्द्र गोंड, राहुल कुमार, शुभम मणि, अभिमन्यु, रितेश व रविशंकर मौजूद रहे।
जानें राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान का इतिहास…
1857 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क बहुत ही क्रूर था। वह इलाके के छोटे राजाओं, जमीदारों को परेशान किया करता था और मनमाना कर वसूलता था। इस पर तत्कालीन गोंडवाना राज्य, जो कि मौजूदा जबलपुर और मंडला का इलाका था, वहां के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेज कमांडर क्लार्क के सामने झुकने से इंकार कर दिया था। दोनों ने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू किया। बताया जाता है कि दोनों पिता-पुत्र अच्छे कवि थे और वह अपनी कविताओं के जरिए राज्य में लोगों को क्रांति के लिए प्रेरित करते थे। कमांडर क्लार्क को अपने गुप्तचरों से यह बात पता चल गई। जिस पर क्लार्क ने राज्य पर हमला बोल दिया और अंग्रेज कमांडर ने धोखे से पिता-पुत्र को बंदी बना लिया था। 14 सितंबर को दोनों को बंदी बनाया गया और आज ही के दिन 18 सितंबर को दोनों को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया था। उसके बाद से हर साल 18 सितंबर को इस दिन को जनजातीय समाज बलिदान दिवस के रूप में मनाता है।
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