विश्व स्ट्रोक दिवस पर आयुष की पहल से बढ़ी उम्मीद
- समग्र चिकित्सा से स्ट्रोक की रोकथाम और पुनर्वास को नया आधार, केंद्र सरकार ने दी एकीकृत स्वास्थ्य मॉडल को गति
Khabari Chiraiya Desk: भारत में तेजी से बढ़ती स्ट्रोक की चुनौती को लेकर अब स्वास्थ्य व्यवस्था केवल अस्पतालों तक सीमित उपचार के बजाय एक समग्र मॉडल की ओर बढ़ रही है। विश्व स्ट्रोक दिवस 2025 के अवसर पर आयुष मंत्रालय ने पारंपरिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों को मुख्यधारा की स्ट्रोक केयर के साथ जोड़ने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। मंत्रालय का मानना है कि यह एकीकृत प्रयास स्ट्रोक से होने वाली मृत्यु और दिव्यांगता को कम करने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।
आयुष प्रणालियां…आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी, होम्योपैथी, योग और प्राकृतिक चिकित्सा शरीर, मन और पर्यावरण के बीच संतुलन के सिद्धांत पर कार्य करती हैं। इनका उद्देश्य केवल रोग के लक्षणों को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना, तंत्रिका तंत्र को मजबूत करना और स्ट्रोक के बाद रिकवरी को तेज करना है। इसी वजह से वैज्ञानिक शोधों के साथ मिलकर आयुष उपचार अब स्ट्रोक मैनेजमेंट का महत्वपूर्ण पूरक बनते जा रहे हैं।
केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने कहा कि स्ट्रोक के बढ़ते मामले यह साबित करते हैं कि हमारे स्वास्थ्य मॉडल को निवारक एवं पुनर्वास उपायों पर अधिक जोर देना होगा। उन्होंने बताया कि आयुष मंत्रालय ऐसे प्रमाण आधारित उपचारों को बढ़ावा दे रहा है जो दीर्घकालिक लाभ देते हुए रोगी की जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाएं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जनजागरूकता के बिना इस चुनौती से प्रभावी ढंग से लड़ना संभव नहीं है, इसलिए बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान शुरू किए जा रहे हैं।
आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा कि आयुष आधारित रिसर्च को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि स्ट्रोक जैसे जटिल तंत्रिका विकारों में पारंपरिक चिकित्सा किस प्रकार वैज्ञानिक रूप से प्रभावी है। उन्होंने बताया कि देशभर के आयुष संस्थान शोध सहयोग के साथ ऐसे उपचार विकसित कर रहे हैं जो रोकथाम से लेकर पुनर्वास तक, हर चरण में संपूर्ण सहायता प्रदान कर सकें।
स्ट्रोक को आम भाषा में ब्रेन अटैक भी कहा जाता है। मस्तिष्क को रक्त आपूर्ति रुकने पर कुछ ही मिनटों में गंभीर नुकसान शुरू हो जाता है। इस स्थिति में समय पर चिकित्सकीय हस्तक्षेप और उसके बाद लंबी अवधि तक पुनर्वास की आवश्यकता होती है। आयुर्वेद में इसे वात के असंतुलन से जुड़ा माना गया है, जहां शरीर के एक हिस्से में कमजोरी या लकवा तक हो सकता है। पंचकर्म, औषधियां, योग और प्राकृतिक चिकित्सा के संयोजन से धीरे-धीरे तंत्रिका कार्यों की बहाली पर काम होता है। वहीं कई अध्ययनों में होम्योपैथी को स्ट्रोक के बाद मोटर रिकवरी और जीवन गुणवत्ता सुधार में सहायक पाया गया है।
आयुष मंत्रालय के अनुसार एक ऐसा स्वास्थ्य मॉडल विकसित किया जा रहा है जो महामारी और गैर-संचारी रोगों दोनों से निपट सके। इसमें आधुनिक चिकित्सा और आयुष प्रणालियों के बीच तालमेल बनाकर स्ट्रोक के भार को कम करना प्रमुख लक्ष्य है। यह पहल बताती है कि भारत केवल रोग का उपचार नहीं, बल्कि स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में भी आगे बढ़ रहा है।
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