बिहार: चुनावी संग्राम चरम पर, विकास और असंतोष की जंग में कौन बनेगा विजेता
- लगातार पांच बार जीत चुके भाजपा विधायक प्रमोद कुमार की राह इस बार पहले से ज्यादा कठिन दिखाई दे रही है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह चुनाव अब ‘विकास बनाम अविश्वास’ की दिशा में जा रहा है
Khabari Chiraiya Desk : मोतिहारी सीट बिहार के चुनावी नक्शे पर सबसे चर्चित बन गई है। राजनीतिक पर्यवेक्षक कह रहे हैं कि यहां का परिणाम पूरे राज्य में सत्ता के भविष्य का संकेत देगा। पांच बार से निर्वाचित भाजपा विधायक प्रमोद कुमार इस बार अपनी छठी जीत के लिए मैदान में हैं, लेकिन राजनीतिक परिस्थिति अब पहले जैसी नहीं रही। मतदाताओं में असंतोष की लहर, अंदरूनी बगावत और विपक्षी रणनीतियों ने मुकाबले को दिलचस्प और जटिल बना दिया है।
स्थानीय मतदाता इस बार परंपरा से हटकर सोचते दिखाई दे रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि पिछले एक दशक में भाजपा ने इस सीट पर जो मजबूत पकड़ बनाई थी, वह अब दरकती नज़र आ रही है।
भ्रष्टाचार और भय के बीच फंसा मतदाता
इस चुनाव में मोतिहारी की जनता एक कठिन दुविधा से गुजर रही है। एक ओर भाजपा विधायक प्रमोद कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार और विकास में ठहराव के आरोप हैं तो दूसरी ओर राजद प्रत्याशी देवा गुप्ता पर आपराधिक छवि और भय के माहौल से जुड़ी चर्चाएं हावी हैं।
लोगों का कहना है कि पिछली बार विकास के नाम पर जो उम्मीदें थीं, वे अब अधूरी रह गई हैं। वहीं राजद के खिलाफ पुरानी अराजकता की छवि मतदाताओं को दुविधा में डाल रही है। यही वजह है कि यह चुनाव ‘भ्रष्टाचार बनाम भय’ की दोधारी तलवार पर टिका नजर आता है।
भाजपा के किले में सेंध, बिखर रहे हैं पारंपरिक वोटर
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसके अपने ही परंपरागत वोट बैंक से उत्पन्न हुई है। वैश्य, कायस्थ और भूमिहार वर्ग, जो दशकों से भाजपा की रीढ़ माने जाते थे, अब विभाजित होते नजर आ रहे हैं। राजद ने रणनीतिक रूप से वैश्य समुदाय के देवा गुप्ता को उम्मीदवार बनाकर भाजपा के गढ़ में सेंधमारी की है। वहीं जनसुराज के उम्मीदवार डॉ. अतुल कुमार (कायस्थ) और निर्दलीय उम्मीदवार दिव्यांशु भारद्वाज (भूमिहार) भाजपा के पुराने समर्थक मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर यह वोट बैंक तीन-चार हिस्सों में बंट गया, तो भाजपा के लिए यह सीट संभालना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
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स्थानीय मुद्दे और विकास पर बहस
मोतिहारी की जनता के बीच सड़कों, रोजगार, पानी और स्वच्छता जैसे बुनियादी मुद्दे गूंज रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में कृषि संबंधी योजनाओं की धीमी प्रगति और छोटे व्यापारियों पर बढ़ते आर्थिक दबाव ने जनता में नाराज़गी बढ़ाई है। भाजपा अपने चुनावी प्रचार में केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों को जोर-शोर से गिना रही है। प्रधानमंत्री मोदी की योजनाएं-महिला खातों में 10,000 रुपये की सहायता और 150 यूनिट मुफ्त बिजली जैसी घोषणाएं…भाजपा के प्रचार की रीढ़ बनी हुई हैं। लेकिन मतदाताओं का एक तबका मानता है कि यह चुनाव केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि विश्वसनीयता और स्थानीय जवाबदेही के आधार पर तय होगा।
राजद की रणनीति और विपक्ष का आत्मविश्वास
राजद इस बार ‘भय’ के आरोपों से उबरने और युवाओं को जोड़ने पर फोकस कर रही है। देवा गुप्ता की उम्मीदवारी वैश्य समुदाय में नई ऊर्जा पैदा करने के प्रयास के रूप में देखी जा रही है। पार्टी का दावा है कि जनता अब बदलाव चाहती है और मोतिहारी इसका प्रतीक बनेगा। राजद के नेता यह भी कह रहे हैं कि भाजपा के भीतर असंतोष, टिकट वितरण में असहमति और स्थानीय कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता ने विपक्ष को अप्रत्याशित ताकत दी है।
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मोदी-नीतीश के विकास कार्ड पर टिकी भाजपा की उम्मीदें
भाजपा अपने प्रचार में लगातार ‘विकास और सुशासन’ को मुद्दा बना रही है। पार्टी का विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रशासनिक अनुभव जनता को फिर से भाजपा की ओर खींच लाएगा। भाजपा के रणनीतिकार यह भी मानते हैं कि अंततः मतदाता भय और भ्रष्टाचार की बहस से ऊपर उठकर विकास को प्राथमिकता देंगे। परंतु ज़मीनी हालात बता रहे हैं कि इस बार मोतिहारी का चुनावी रण पहले से कहीं अधिक अनिश्चित है।
मोतिहारी का परिणाम तय करेगा बिहार की दिशा
पूर्वी चंपारण की यह सीट अब पूरे बिहार के लिए राजनीतिक संकेतक बन चुकी है। यदि भाजपा यहां अपनी परंपरागत पकड़ बचाने में सफल रहती है तो यह उसके लिए राज्यव्यापी राहत का संकेत होगा। लेकिन अगर परिणाम उम्मीदों के विपरीत गया तो यह बिहार की सत्ता के समीकरणों में बड़ा उलटफेर साबित हो सकता है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मोतिहारी का फैसला केवल एक सीट का नहीं, बल्कि ‘भय, भ्रष्टाचार और विकास’ की तिहरी परीक्षा का परिणाम होगा।
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