राममय अयोध्या में धर्मध्वज ने बढ़ाई मंदिर की आभा
- प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में अनुशासन विनम्रता और सांस्कृतिक अस्मिता पर जोर दिया।
Khabari Chiraiya Desk : अयोध्या में आयोजित भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत सियावर रामचंद्र की जय के उद्गार से की। उन्होंने कहा कि आज वह युगांतकारी क्षण है जब सदियों से चली आ रही पीड़ा और प्रतीक्षा का अंत दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि राम दुनिया के लिए प्रकाश का मार्ग हैं और पूरे विश्व में आज उनकी भावना प्रवाहित हो रही है। उन्होंने इसे संकल्प से सिद्धि की यात्रा का प्रतीक बताया तथा कहा कि हमारी जड़ों से जुड़ना ही राष्ट्र की वास्तविक शक्ति है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैकाले द्वारा थोपे गए मानसिक बंधनों से अगले दशक में पूरी तरह मुक्त होना है और अपनी सांस्कृतिक अस्मिता पर गर्व के साथ आगे बढ़ना है।
मोदी ने राम कथा से जुड़े पात्रों का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि शबरी की निश्छल भक्ति, निषादराज की मित्रता, केवट का समर्पण और जटायु का साहस हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि अयोध्या की धरती ने यह सिखाया है कि मर्यादा पुरुषोत्तम बनने के लिए विनम्रता, अनुशासन और लोककल्याण की भावना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि महिला, युवा, दलित, वंचित और आदिवासी समाज राष्ट्र निर्माण के केंद्र में हैं और विकास का वास्तविक मॉडल सहभागिता पर आधारित है न कि केवल शक्ति प्रदर्शन पर।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर सुसज्जित केसरिया ध्वज को विधि पूर्वक स्थापित किया और जैसे ही वह ध्वज ऊंचाई पर लहराया वैसे ही पूरा वातावरण आध्यात्मिक आलोक से भर उठा। रामलला के दिव्य धाम की यह छवि देखते ही वहां मौजूद साधु संत और लाखों भक्त भावविभोर हो उठे।
प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के सान्निध्य में संपन्न इस पवित्र अवसर को लोगों ने केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सदियों की तपस्या की पूर्णता के रूप में महसूस किया। लंबे समय से चली आ रही इंतजार और श्रद्धा की धारा मानो इसी क्षण में समाहित हो गई। राममंदिर निर्माण से जुड़ी ऐतिहासिक तिथियों की श्रृंखला में अब 25 नवंबर को भी विशेष महत्व मिल गया है।
धर्मध्वज का प्रतिष्ठापन सदियों पुरानी सनातन परंपरा की जीवंतता और अटूट आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक माना गया। जिस प्रकार यह ध्वज ऊंचे शिखर पर लहराया उसी प्रकार भक्तों के हृदय में भक्ति और गौरव का ज्वार उमड़ पड़ा। यह क्षण अयोध्या के संत समाज और रामभक्तों के मन में हमेशा के लिए अंकित हो गया क्योंकि इसमें श्रद्धा, समर्पण और आध्यात्मिक गरिमा एक साथ उपस्थित थीं।
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