चीन की धरती पर भारत की गूंज

Khabari Chiraiya Desk : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा केवल एक औपचारिक राजनयिक कार्यक्रम नहीं रही, बल्कि यह संस्कृति, भावनाओं और कूटनीति का ऐसा संगम बन गई जिसने दोनों देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा भर दी। सात साल बाद जब मोदी ने आज तियानजिन एयरपोर्ट पर कदम रखा तो लाल कालीन, पारंपरिक नृत्य और संगीत ने इस आगमन को ऐतिहासिक बना दिया। यह स्वागत यह संदेश दे रहा था कि चीन भारत के साथ अपने रिश्तों को एक नई ऊंचाई पर ले जाने को तैयार है।
भारतीय संस्कृति की गूंज चीन की धरती पर
तियानजिन के होटल में प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य से किया गया। यह कोई साधारण प्रस्तुति नहीं थी, बल्कि चीनी नागरिकों द्वारा दी गई थी जो वर्षों से भारतीय संस्कृति का अध्ययन कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर हुआ कि भारतीय संस्कृति की जड़ें सीमाओं के पार कितनी गहराई से फैली हुई हैं और वह दोनों देशों के बीच एक अनकहा पुल बना रही हैं।
भावुक चीनी महिला और प्रवासी भारतीयों का उत्साह
मोदी के स्वागत में प्रवासी भारतीय बड़ी संख्या में मौजूद थे। उन्होंने ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नारों से वातावरण को देशभक्ति से भर दिया। इस बीच एक चीनी महिला भावुक हो गई। उसके पति भारतीय हैं और मोदी से मुलाकात के बाद उसने खुले दिल से कहा-“मैं मोदी से प्यार करती हूं, मैं भारत से प्यार करती हूं।”
शंघाई सहयोग संगठन और रणनीतिक समीकरण
मोदी की यह यात्रा मुख्य रूप से शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन से जुड़ी है, जहां 31 अगस्त से 1 सितंबर तक वह हिस्सा लेंगे। इस दौरान उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होगी। यह मुलाकातें सिर्फ शिष्टाचार नहीं बल्कि रणनीतिक महत्व रखती हैं। बदलते वैश्विक समीकरणों में भारत का संतुलन साधना, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ रिश्ते बनाए रखते हुए चीन और रूस के साथ संवाद जारी रखना, मोदी की विदेश नीति की एक अहम कसौटी है।
सात साल बाद चीन की धरती पर मोदी
प्रधानमंत्री आखिरी बार 2018 में चीन पहुंचे थे। उस वक्त भी बातचीत और संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश हुई थी, लेकिन सीमा विवाद और भू-राजनीतिक तनाव रिश्तों में बाधा बने। आज, जब मोदी सात साल बाद चीन पहुंचे हैं तो यह केवल एक सम्मेलन यात्रा नहीं है, बल्कि संकेत है कि भारत और चीन कड़वाहट के बावजूद बातचीत और सहयोग के रास्ते पर लौटना चाहते हैं।
कूटनीतिक संदेश और भविष्य की राह
तियानजिन में मिला गर्मजोशी से भरा स्वागत केवल औपचारिकता नहीं था। यह उस संभावना की झलक है जिसमें दोनों देश सांस्कृतिक रिश्तों को आगे बढ़ाकर राजनीतिक और आर्थिक सहयोग को नई ऊंचाई दे सकते हैं। मोदी की इस यात्रा से यह संदेश भी गया है कि भारत बातचीत और साझेदारी के जरिए ही एशिया में स्थिरता और संतुलन चाहता है।
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