बिहार चुनाव : मुकेश सहनी के बदले सुर से महागठबंधन में दरार की गूंज

- पहले ‘महागठबंधन सरकार’ का नारा देने वाले सहनी ने अब पोस्टर से यह शब्द हटाकर नई भाषा में संदेश दिया है
Khabari Chiraiya Desk: बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन में इस बार बिखराव की आहट वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की ओर से सुनाई दे रही है। कुछ दिन पहले तक “14 नवंबर, आ रही है महागठबंधन सरकार” का नारा देने वाले सहनी ने अब अपने नवीनतम पोस्टर से ‘महागठबंधन’ शब्द पूरी तरह गायब कर दिया है। शनिवार शाम जारी पोस्टर में लिखा है-“14 नवंबर को हम बिहार में ऐसी सरकार बनाएंगे, जहां हर वर्ग को उसका हक और सम्मान मिलेगा।”
इस बदलाव ने सियासी गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह महज शब्दों का फेर नहीं, बल्कि गठबंधन की दिशा में बड़ा संकेत है। सहनी ने पिछले दिनों अपने सोशल मीडिया पर लिखा था-“मैंने संघर्ष का रास्ता चुना है।” यह बयान तब आया जब सीट बंटवारे पर महागठबंधन के भीतर बातचीत अटक गई थी और खबरें आने लगी थीं कि सहनी को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। सूत्रों के मुताबिक, उन्हें साफ कहा गया कि यदि वे तय सीटों और शर्तों पर सहमत नहीं हैं तो अलग राह चुन सकते हैं।
यह पहली बार नहीं है जब मुकेश सहनी गठबंधन के मोर्चे पर विवादों में घिरे हैं। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तेजस्वी यादव पर ‘पीठ में छुरा घोंपने’ का आरोप लगाते हुए महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था। बाद में भाजपा ने उन्हें एनडीए में शामिल कर 11 सीटें दीं और सहनी ने भाजपा नेता अमित शाह को अपना राजनीतिक गुरु भी बताया था।
इस बार भी मामला सीट और पद की जिद पर अटका है। सहनी शुरू से 60 सीटों की मांग करते आ रहे थे, लेकिन बातचीत के दौरान उनके हिस्से में लगभग 15-16 सीटें तय हो रही थीं। वहीं, उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद पर भी अपनी दावेदारी जताई और यह तक कहा कि “सीट 14 मिले या 44, डिप्टी सीएम वही बनेंगे।” दूसरी ओर, महागठबंधन में कांग्रेस तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित करने से बचती रही, जिससे पूरा समीकरण और उलझ गया है।
अब सबकी निगाहें मुकेश सहनी के अगले कदम पर टिकी हैं-क्या वे अपने तेवर नरम करेंगे या नया रास्ता पकड़ेंगे? सियासी जानकारों का मानना है कि अगर सहनी महागठबंधन छोड़ते हैं तो इसका असर विपक्षी एकता पर गहरा पड़ेगा। वहीं, एनडीए में भी उनके लिए जगह सहज नहीं है। भाजपा ने जहां जेडीयू और चिराग पासवान की एलजेपी-रामविलास को समायोजित कर लिया है, वहीं जीतनराम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की रालम को मनाने में देरी हो रही है।
पहले चरण के नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, और सीट बंटवारे में देरी से दोनों गठबंधनों में बेचैनी बढ़ गई है। राजनीतिक सूत्र कहते हैं कि अब हर दल अपने “नाराज फूफा” को पीछे छोड़कर चुनावी ‘बारात’ निकालने की तैयारी में है।
बिहार की यह सियासी पटकथा अगले कुछ दिनों में तय करेगी कि महागठबंधन एकजुट रहेगा या एक और ‘सहनी अध्याय’ उसकी कहानी में नया मोड़ जोड़ देगा।
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