December 22, 2025

खबरी चिरईया

नजर हर खबर पर

भारतीय यात्रियों ने अमेरिका से दूरी बनानी शुरू की

वीज़ा नियमों
  • वीज़ा नियमों की सख़्ती और प्रक्रियात्मक जटिलताओं ने भारत से अमेरिका की यात्रा को कठिन बना दिया है। जून 2025 में आठ प्रतिशत की गिरावट बताती है कि लोग विकल्प तलाश रहे हैं

Khabari Chiraiya Desk: वीज़ा नियमों की सख़्ती, अनिश्चित माहौल और प्रक्रियात्मक देरी ने भारत से अमेरिका की यात्रा पर पहली बार गहरी चोट की है। कोविड काल को छोड़ दें तो इस सहस्राब्दी में जून 2025 ऐसा महीना रहा जब रिकॉर्ड संख्या में भारतीयों ने अमेरिका का रुख़ नहीं किया। अमेरिकी आंकड़े बताते हैं कि पिछले वर्ष की तुलना में यात्रियों की संख्या आठ प्रतिशत घट गई। यह गिरावट केवल पर्यटक आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और नीति-निर्णयों का गहरा संकेत है। यदि यही रुझान जारी रहा तो अमेरिका को आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक तीनों मोर्चों पर नुकसान उठाना पड़ेगा।

भारत से जून में 2.3 लाख के बजाय केवल 2.1 लाख यात्री अमेरिका पहुंचे। जुलाई की शुरुआती जानकारी और भी चिंताजनक है…लगभग 5.5 प्रतिशत की और कमी। ये आंकड़े अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए केवल राजस्व का नुकसान नहीं हैं; यह उस भरोसे का क्षरण है, जिस पर वर्षों से शिक्षा, पर्यटन और कारोबारी साझेदारी टिके हुए थे।

सबसे बड़ा झटका छात्रों और शोधार्थियों को लगा है। वीज़ा स्लॉट न मिलना, महीनों की देरी और लगातार बदलते नियमों ने उन्हें यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे विकल्पों की ओर धकेल दिया है। अमेरिका की यूनिवर्सिटियां जो भारतीय प्रतिभा से भरपूर होती थीं, अब खाली सीटों और कम होते दाख़िलों का सामना कर सकती हैं। यह सीधा असर उस नवाचार और शोध पर पड़ेगा, जिसे अमेरिका अपनी ताक़त मानता आया है।

पर्यटन और व्यापार भी इससे अछूते नहीं हैं। भारत अमेरिका के लिए चौथा सबसे बड़ा स्रोत देश है, लेकिन भौगोलिक निकटता हटाकर देखें तो यह दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। भारतीयों के कदम धीमे पड़ने का मतलब है…होटल से लेकर एयरलाइंस तक पूरी चेन पर असर। और यह तब है जब अमेरिका को अपनी सॉफ्ट पावर बनाए रखने के लिए और अधिक सहजता की ज़रूरत है।

यह भी पढ़ें...आज का दिन अवसर और सावधानी, दोनों का संतुलन लेकर आया है

ट्रंप की नीतियों ने भले ही सुरक्षा और घरेलू राजनीति के लिहाज़ से अंक बटोरे हों, पर लंबे समय में यह रणनीति आत्मघाती है। अमेरिका की असली ताक़त उसकी खुली व्यवस्था और आकर्षक अवसरों में रही है। यदि वही दरवाज़े बंद होने लगें तो वैश्विक प्रतिभा और पर्यटक दूसरी राह चुनेंगे।

भारत के लिए भी यह अनुभव सबक है। वैश्विक गतिशीलता को देखते हुए एक देश पर अत्यधिक निर्भरता हमेशा जोखिमभरी रहती है। छात्र-पर्यटन-व्यापार की योजनाओं को विविध बनाना और वैकल्पिक गलियारों की ओर रुख करना अब प्राथमिकता होनी चाहिए।

अमेरिका में 50 लाख से ज़्यादा भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जो दोनों देशों को गहराई से जोड़ते हैं। यह रिश्ता तभी जीवंत रहेगा जब यात्रा का प्रवाह सुचारु हो। जून-जुलाई के आंकड़े चेतावनी की घंटी हैं। अब यह अमेरिका पर है कि वह अपने दरवाज़े और खोले या भारतीय कदमों को दूसरी दिशा में जाने दे।

यह भी पढ़ें… शराबबंदी पर सख्त फैसले ने अपराधियों को दिया चेतावनी भरा संदेश

यह भी पढ़ें… प्रधानमंत्री मोदी की जापानी गवर्नरों संग विशेष वार्ता

यह भी पढ़ें… अमेरिका में ट्रंप की नीतियों पर अदालत की दोहरी चोट

यह भी पढ़ें… जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन से पूरा परिवार दबा

यह भी पढ़ें…भारत-जापान आर्थिक फोरम में नई ऊंचाई पर पहुंची साझेदारी

  आगे की खबरों के लिए आप हमारी वेबसाइट पर बने रहें…

error: Content is protected !!