September 5, 2025

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शराबबंदी पर सख्त फैसले ने अपराधियों को दिया चेतावनी भरा संदेश

शराबबंदी
  • 480 बोतल नेपाली शराब के साथ पकड़े गए आरोपी को सात साल की सजा और एक लाख का जुर्माना सुनाकर अदालत ने शराबबंदी कानून की गंभीरता को दोहराया

Khabari Chiraiya Desk बिहार : मोतिहारी की अदालत ने शराब कारोबारी को 7 साल की सजा और एक लाख का जुर्माना सुनाकर साफ कर दिया कि कानून के सामने कोई भी अपराधी बच नहीं सकता। यह फैसला पुलिस की तत्परता और न्यायपालिका की दृढ़ता का ऐसा उदाहरण है, जो आने वाले समय में अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने का मजबूत जरिया बनेगा।

बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से ही यह सवाल बना रहा कि क्या यह कानून केवल कागजों तक सीमित रहेगा या फिर वास्तविक रूप से जमीनी स्तर पर असर दिखाएगा। मोतिहारी से आई ताज़ा घटना ने इस सवाल का जवाब अपने आप दे दिया है। 29 अगस्त को पूर्वी चंपारण की विशेष न्यायाधीश सीमा भारतीया ने शराब कारोबारी लक्ष्मण साह को सात साल की कठोर कारावास और एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। यह केवल एक अभियुक्त के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के उन लोगों के लिए चेतावनी है जो अब भी शराब के अवैध धंधे को आसान कमाई का जरिया मानते हैं।

इस फैसले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें पुलिस और न्यायपालिका की साझी भूमिका स्पष्ट रूप से दिखती है। 3 नवंबर 2018 को लखौरा थाना क्षेत्र में वाहन जांच के दौरान तत्कालीन थानाध्यक्ष जयनाथ प्रसाद ने जिस तत्परता से कार्रवाई की, उसी की बदौलत यह केस आगे बढ़ पाया। 480 बोतल नेपाली शराब के साथ पकड़े गए लक्ष्मण साह को गिरफ्तार कर पुलिस ने कांड संख्या 692/18 दर्ज किया। इसके बाद विशेष लोक अभियोजक अनिल कुमार सिंह ने अदालत में पांच गवाहों के साक्ष्य प्रस्तुत किए। गवाहों की स्पष्ट गवाही और अनुसंधानकर्ता की मजबूत रिपोर्ट के आधार पर अभियोजन पक्ष का पक्ष मज़बूत हुआ और न्यायालय ने कठोर फैसला सुनाया।

यह निर्णय केवल कानून का पालन कराने भर की औपचारिकता नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक बड़ा संदेश है। बिहार में शराबबंदी का उद्देश्य सिर्फ प्रतिबंध लगाना नहीं था, बल्कि यह सामाजिक सुधार का प्रयास था। शराब के कारण टूटते परिवार, बिगड़ते स्वास्थ्य और बढ़ते अपराधों को रोकने की मंशा से यह कानून बना था। लेकिन तस्करी और अवैध कारोबार ने इसे लगातार चुनौती दी। मोतिहारी का यह फैसला बताता है कि सरकार और न्यायपालिका इस चुनौती से पीछे हटने वाली नहीं है।

फिर भी, यह मान लेना कि केवल सख्त फैसलों से शराबबंदी सफल हो जाएगी, एक सरलीकरण होगा। वास्तविकता यह है कि सीमा से सटे जिलों में शराब तस्करी की जड़ें गहरी हैं। नेपाल की सीमा से लगातार हो रही तस्करी को रोकने के लिए केवल पुलिसिया कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं होगी। इसके लिए सीमा सुरक्षा, खुफिया नेटवर्क और स्थानीय स्तर पर जनजागरण की भी आवश्यकता है। जब तक समाज इस कानून को अपनी जिम्मेदारी मानकर सहयोग नहीं करेगा, तब तक ऐसे मामले सामने आते रहेंगे।

फिर भी, मोतिहारी का यह फैसला आशा की किरण दिखाता है। यह भरोसा जगाता है कि यदि पुलिस ईमानदारी से जांच करे और न्यायपालिका उसी दृढ़ता से निर्णय दे तो शराबबंदी कानून केवल कागजों पर नहीं, बल्कि धरातल पर भी असरदार साबित होगा। यह संदेश अब साफ है कि बिहार में शराबबंदी की आड़ में कारोबार करने वाले अपराधियों के लिए आने वाले दिन और कठिन होंगे।

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